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________________ • चैत्यों में शुद्ध आचरण और परिष्कार के लिए श्री जिनवल्लभ सूरि मेवाड़ आये और वहां उन्होंने चित्तोड़ में दो नये चैत्यों की विधिवत प्रतिष्ठा कराई। फिर आप बागड़ गए और फिर धारा नगरी पहुंचे, जहां उस समय (सं० ११६१) नर वर्मा का शासन था। नागौर में आपने नेमि-जिनालय की प्रतिष्ठा कराई । आपका स्वर्गवास सं० ११६७ में हुआ। श्री जिनवल्लभ सूरि को सूरिपद आचार्य देवभद्र ने प्रदान किया था। आपके द्वारा रचित ग्रंथों की सूचि इस प्रकार है १. पिंडविशुद्धि प्रकरण २. गणधर सार्ध शतक ३. आगमिक वस्तुविचारसार ४. पौषध विधि प्रकरण ५. संघ पट्टक प्रतिक्रमण समाचारी ६. धर्म शिक्षा ७. धर्मोपदेशमय द्वादश कूलकरूपप्रकरण ८. प्रश्नोत्तर शतक ९. शृंगार शतक १०. स्वप्नाष्टक विचार ११. चित्र काव्य १२. अजित शांति स्तव १३. भवारिवारण स्तोत्र १४. जिनकल्याण स्तोत्र १५. जिन चरित्र मय जिन स्तोत्र १६. महावीर चरित्र मय वीर स्तव एक उल्लेख के अनुसार इन ग्रन्थों में से धर्म शिक्षा और संघपट्टक प्रकरण को चित्तौड़, नागौर आदि के जिनालयों में शिलांकित भी कराया गया था। प्रस्तुत कृति महावीर-चरित्र संभवतः उपरि लिखित १६ कृतियों में अन्तिम 'महावीर चरित्र मय वीर स्तव' की प्रतिलिपि है, किन्तु प्रतिलिपिकर्ता पं० अभय माणिक्य मुनि ने वेनातट नगर में जव इस ग्रन्थ की प्रतिलिपि की तो उन्हें मिली आदर्श प्रति में संभवतः वीर स्तव नहीं था, अन्यथा वे उसकी भी प्रतिलिपि करते। इस महावीर-चरित्र की अन्तिम गाथा (क्रमांक-४४) निम्न प्रकार है एवं वीर जिणे सणेसर तुमं, मोहंधविद्धं सणं । भव्वंभोरुह बोह सोह जणयं दोसायरच्छेयणं ।। थोउं जं कुसलाणुबंधि कुसलं पत्तोम्हि किंची तओ । जाइज्जा जिणवल्लहो मह सया पायप्पणामो तुह ।। तुमसी प्रक्षा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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