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________________ जनक स्थिति पर विचार किया और उसी क्षण अपनी दासी को राजाजी के पास भेजा। दासी ने राजाजी के सामने रोते हुए प्रकट किया कि बड़ा ही बुरा हुआ । रानीजी महल में बने 'चहबचे' (छोटे सरोवर) में नहाते समय डूब गई। ___ इतना सुनते ही राजा ने हरिण-हरिणी को वहीं छोड़ दिया और दौड़कर वह राजमहल में आये। रानी उसे अत्यंत प्रिय थी। उसके लिए राजा बुरी तरह विलाप करने लगा। इस पर दासी ने प्रकट किश कि वह रानीजी को वापिस जीवित करके सामने ला सकती है। परन्तु शर्त यह है कि उन्हें रानीजी की बात स्वीकार करनी होगी। राजा इसके लिए तैयार हो गया और दासी ने भीतरी महल में जाकर वहां छिपी हुई रानी को राजा के सामने उपस्थित कर दिया। रानी ने अपने पति से कहा, "जिस प्रकार आप पत्नी के वियोग में दुःख का अनुभव कर रहे थे, वैसी ही पीड़ा बिचारी जंगल की हरिणी को अपने पति के लिए हो रही है। आप अपने अनुभव के अनुसार उन दोनों को मुक्त कर दें और आगे के लिए शिकार का दुव्यसन एकदम छोड़ दें। राजा ने यह बात मान ली। दोनों वन्य-जीव छोड़ दिए गए और राज्य भर में आज्ञा प्रसारित करवा दी गई कि आगे से अब कोई भी व्यक्ति जानवरों का शिकार नहीं करेगा। राजस्थान की उपर्युक्त कहावती लोककथा की 'वस्तु' संक्षिप्त रूप में इतनी ही है परन्तु इस पर गहराई के साथ विचार करने से कई महत्त्वपूर्ण तत्त्व सामने आते हैं, जो इस प्रकार है १. प्राचीनकाल से चली आ रही 'बोध-कथाओं' अथवा 'नीति-कथाओं में पशुपक्षी आदि पात्र प्रकट होते हैं और वे मानवोचित व्यवहार करते हैं। इसी प्रकार अनेक कथाओं में मनुष्यों के साथ भी पशु-पक्षी देखे जाते हैं परन्तु वे पाठकों अथवा श्रोताओं के लिए अविश्वसनीय नहीं होते । 'जातक कथाओं', 'पंचतन्त्र की नीति-कथाओं' तथा ईसप की बोध-कथाओं में ऐसा अनेकशः दृष्टि-गोचर होता है। २. रचना-शिल्प के विचार से इस कहानी पर ध्यान दिया जाए तो प्रारंभ में यह एक नीति-कथा प्रतीत होती है, जो सहज ही 'बुद्धिमान शशक और सिंह' विषयक प्रसिद्ध लोक-कथा को स्मरण करवा देती है । इसके बाद यह एक शृंगार रसात्मक कहानी का रूप धारण करती है और इसकी समाप्ति एक धर्म-कथा के रूप में होती है। एक ही कथा-वस्तु में ये तीन रंग बड़े रंजक रूप में प्रकट होते हैं, जो अन्यत्र कम ही देखे जाते हैं। ३. इस कथानक में दाम्पत्य प्रेम की महिमा प्रकाशमान है, प्रथम हरिण-हरिणी के जोड़े में और इसके बाद राज-दम्पती में । हरिणी प्रेम की उज्ज्वल प्रतिमा है तो राजरानी अत्यंत संवेदनशीला होने के साथ-साथ विशेष रूप से बुद्धिमती भी है। उसकी चतुराई से ही इस कथा की सुखान्त-समाप्ति हुई है । अन्य भी, अनेक राजस्थानी लोक-कथाओं में नारी के चातुर्य को सुन्दर रूप में चित्रित किया गया है, जो अत्यंत आकर्षक एवं श्लाघ्य है। ऐसी कहा नियों में जन-साधारण की विशेष अभिरुचि देखी जाती है । र २१, अंक २ २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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