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________________ ४. अनेक लोक-कथाओं को नीति-कथाओं अथवा धार्मिक-कथाओं का रूप दिया गया है । ये 'प्रवचन' के अवसर पर दृष्टांत के रूप में बड़ी प्रभावशाली सिद्ध होती हैं । जन-साधारण में सिद्धांत-वाक्यों पर इतना ध्यान नहीं दिया। जाता, जितना कि इन दृष्टांतों पर। ये दृष्टांत नीति-तत्त्व अथवा धर्म-तत्त्व को रोचक रूप देने में अत्यंत सहायक हैं। यही कारण है कि ऐसे दृष्टान्तों के अनेक उपयोगी संकलन तैयार होते रहे हैं, जो हस्त-प्रतियों में सुरक्षित हैं। ५. इस लोक-कथा का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण संदेश है --'अहिंसा परमो धर्मः।' इसमें हिंसा पर अहिंसा की विजय प्रकट की गई है, जिसे सम्राट अशोक ने अनेक शिलाओं पर अंकित करवा कर संतोष अनुभव किया था। इसका सार-तत्व है 'आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् ।। प्रस्तुत राजस्थानी लोक-कथा में यही तत्त्व चरितार्थ हुआ है, जो विशेष रूप से ध्यातव्य है। --(डॉ. मनोहर शर्मा) कैलाश निकुंज, भारती बगीची रानी बाजार, बीकानेर (राजस्थान) २४८ तुलसी प्रकार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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