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"मैं तो मखं मेरी आई । तूं क्यूं मरे पराई जाई ।।'
जब कोई व्यक्ति विपत्ति में होता है और दूसरा व्यक्ति उसकी आपदा दूर करने के लिए सामने आता है तो संकटग्रस्त व्यक्ति इस कहावत का प्रयोग करता है और उसे अलग ही रहने के लिए कहता है । इस कथन के पीछे एक लम्बी 'बात' है, जो बड़ी रंजक और सरस है । आगे उस 'बात' की संक्षिप्त कथावस्तु दी जाती है, इस प्रकार है
एक राजा को मांसाहार का बुरा व्यसन था। वह प्रतिदिन जंगल जाता और वहां जानवरों की शिकार करता । इस शिकार में कई वन्य जीव मारे जाते और अनेक घायल होकर पीड़ा भोगते । ऐसी स्थिति में जंगल के जानवरों ने एक दिन सभा जोड़कर निश्चय किया कि राजा के सामने कोई ऐसा प्रस्ताव रखा जावे, जिससे यह पीड़ा मिट सके । तदनुसार उन्होंने तय किया कि बारी-बारी से प्रतिदिन एक जानवर स्वयं ही राजद्वार पर पहुंच जावे और राजा को वन में मृगया हेतु आना ही न पड़े । यह प्रस्ताव राजा की सेवा में पहुंचाया गया तो उसने इसे स्वीकार कर लिया और प्रतिदिन अपनी बारी से एक जानवर राजद्वार पर स्वयं ही पहुंचने लगा ।
कुछ समय बीता । एक दिन एक हरिण की राजद्वार पर जाने की बारी आई । वह पैर से लंगड़ा था । अतः वह सांझ पड़ते ही जंगल से रवाना होकर राजधानी के रास्ते पर चल पड़ा, जिससे कि प्रातःकाल वहां पहुच सके ।
थोड़ी रात गुजरी कि तेज वर्षा प्रारंभ हो गई। ऐसी स्थिति में वह हरिण एक पेड़ के नीचे आकर रुक गया और वर्षा बंद होने की प्रतीक्षा करने लगा । इसी समय एक हरिणी भी पानी से पीड़ित होकर वहीं पेड़ -तले आ पहुंची । हरिणी ने हरिण से कहा कि वे आपस में विवाह कर लें तो उत्तम होगा। इस पर हरिण ने अपनी सारी स्थिति उसके सामने प्रकट की और कहा कि वह तो दिन उगते ही आत्म-बलिदान हेतु राजद्वार पर उपस्थित होगा । हरिणी ने उत्तर दिया कि 'सुख तो घड़ी भर को
ही चोखो ।' फल यह हुआ कि वे पति-पत्नी के रूप में सम्बन्धित हो गए । जब वर्षा बंद हुई तो हरिण अपने मार्ग पर चल पड़ा । पीछे चलने लगी । प्रातःकाल वे दोनों के स्थान पर दो जानवर खड़े देखे तो प्रकट किया कि वह स्वयं अपनी बारी के 'जोड़ायत' है ।
राजद्वार पर पहुंच गए। वह चकित हो गया अनुसार वहां आया है
।
afधक को इस पर कोई एतराज न था । परन्तु हरिणी ने उसे कहा कि अपने पति की एवज में वह स्वयं प्राण देगी । उसे छोड़ दिया जावे । परन्तु हरिण न माना और उसने उसे कहा "मैं तो मरूं मेरी आई तू क्यू मरं पराई - जाई ?" फिर भी हरिणी ने अपना हठ न छोड़ा। ऐसी स्थिति में वधित चकित था । वह कोई निर्णय नहीं कर सका और उसने सारा हाल राजा की सेवा में पहुचा दिया राजा चकित होकर उस स्थान पर आया तो हरिणी
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फूट-फूट कर रोने लगी ।
यह किस्सा रानी के कानों में भी उसी समय पहुंच गया । उसने हरिणी की करुणा
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तुलसी प्रशा
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हरिणी भी उसके पीछेवहां वधिक ने एक
इस पर हरिण ने और साथ में उसकी
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