SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 84
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मरुधरा के पेड़-पौधे में स्वरों का निवास डा. जयचन्द शर्मा मरुधरा की लोक-संस्कृति का इतिहास उतना ही पुराना है, जितना कि इस प्रदेश में मानव का निवास । अपने जीवन एवं परिवार को सुख समृद्ध करने की दृष्टि से यहां के मानव ने चेतन एवं अचेतन पदर्थों की पूजा कर अचेतन पदार्थों में पत्थर, तांबा आदि अनेक धातुओं तथा मिट्टी की मूर्तियां भी बनाई। घरों की दीवारों पर शक्तियों की प्रतीकात्मक आकृतियां बनाकर उनकी उपासना की गई, उनके गीत गाये गए, रतजगे किये गये तथा विविध प्रकार के मिष्ठान्नों द्वारा उनके भोग चढ़ाये गए । चेतन पदार्थों के साथ अपने जीवन को जोड़ते हुए मानव ने उनसे भी वरदान मांगा । पेड़-पौधों में दैविक शक्ति का निवास मानकर उनकी रक्षा की तथा पशु-पक्षी उसके जीवन साथी रहे। मरुधरा की लोक-संस्कृति की सुरक्षा यहां की महिलाओं ने की और कर रही हैं। उन्होंने स्वयं को चेतन एवं अचेतन पदार्थों को समर्पित कर जीना सीखा है। विविध संस्कारों को इन अनपढ़ महिलाओं ने देवी-देवता के तौर पर रखा है और प्रकृति के साथ अपना जीवन जोड़ रखा है। इस साधना से वे किसी प्रकार भी विलग नहीं हुई। ईश्वर कहां है ? ईश्वर से साक्षात्कार करने के लिए अनेक मन्दिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, गिरजाघर आदि उपासना स्थल बने हैं और बनते जा रहे हैं। परन्तु मरूधरा की नारी कहती है कि मेरा ईश्वर प्रकृति के प्रत्येक पदार्थ में मौजूद है चाहे व चेतन हो या अचेतन । यही कारण है कि वह पेड़-पौधों में भी उतनी शक्ति मानती है जितनी की देवी-देवताओं में । वह वक्षों की एक इष्ट-देव के तौर पर पूजा करती है । इसीलिए उनके द्वारा गाये गये गीत-लोक गीत शब्द ब्रह्म, स्वर ब्रह्म के साथ नाद ब्रह्म से संबन्ध स्थापित कराने की अभूतपूर्व शक्ति रखते हैं। पेड़-पौधों को प्रभावित करने वाले रागों में यहां की माड, पहाड़ी, सोरठ, सारंग, मल्हार, देशी आदि रागें तथा जल्ला, मूमल, पणिहारी, पीपली आदि लोक धुनें प्रमुख हैं। क्या इन सप्त-स्वरों का निवास पेड़-पौधों में है ? इस सम्बन्ध में विचार किया जा रहा है । ब्रह्मांड में निनादित होने वाली नाद तरंगें चेतन एवं अचेतन पदार्थों पर प्रभाव डालती हैं। चेतन पदार्थों के तीन रूप देखने में आते है जिन्हें जीवधारी कहते हैं। सर्वप्रथम पेड़-पौधे, द्वितीय स्थान पशु-पक्षी, तृतीय स्थान मानव का है । पेड़-पौधे खण्ड २३, अंक २ २४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy