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________________ अपने स्थान पर स्थायी जीवन जीते हैं ये अधोमुखी जीव हैं इनको अपनी खुराक धरती के भीतरी भाग से मिलती है। मरूधरा पर अनेक प्रकार की वनस्पतियों पाई जाती हैं, जिनका उपयोग मानव शरीर को स्वस्थ रखने की दृष्टि से होता है । पशु-पक्षियों की खुराक भी ये वनस्पतियां आदि हैं । अधोमुखी पेड़-पौधों को खुराक के साथ जल की आवश्यकता रहती है । जंगल में उगे पेड़-पौधों को केवल बरसात का जल ही उपलब्ध होता है परन्तु इनमें इतनी शक्ति होती है कि यह अपनी प्यास बुझाने के लिए साठ-सत्तर हाथ जमीन के नीचे से भी पानी को खींच लेते हैं । सूर्य की शक्ति इन्हें जीवन दान देती है। ऋतु के अनुसार इनकी डालियां पत्तियां हरी भरी हो जाती हैं तथा फल अथवा फलियां देती हैं, जिनका उपयोग मानव अपने भोजन के रूप में करता है। पेड़-पौधों का एक आहार संगीत भी है ये संगीत की मधुर स्वर लहरियों का आनन्द प्राप्त करते रहते हैं । प्रकृति ने इन्हें चलने-फिरने एवं बोलने की शक्ति नहीं दी परन्तु श्रवण शक्ति इन्हें प्राप्त हैं । यही एक ऐसी अदृश्य शक्ति है जिसके सहारे ये अपनी मस्ती में झूमते रहते है। संगीत कला की लयात्मक स्वर लहरी का आनन्द जिस प्रकार पशु-पक्षी प्राप्त करते है, उसी प्रकार पेड़-पौधे भी निरन्तर उसका आनन्द लेते हैं, और अपने भाव व्यक्त करते हैं। उन भावों को समझता है उनके साथ रहने वाला व्यक्ति (माली, किसान) तथा पशु पक्षी । जब वे अपने भावों को प्रकट करते है तो पशु उसके पास आ जाते हैं पक्षी उनकी टहनियों पर बैठकर आनन्दित होते हैं। मन्द-मन्द वायु के झौंकों के साथ उनकी टहनियां झूमती हैं, जो विश्व के संगीत की लय है। प्रकृति के इस महान रहस्य को समझने के लिए नाद योग की साधना आवश्यक है। विद्वानों की मान्यता है कि नाद से शब्द उत्पत्ति हुई है जिसे "ॐ" कहा जाता है। मेरे विचार से ब्रह्मांड में निनादित होने वाली ध्वनि शब्द नाद नहीं वह स्वर नाद है । स्वर की ध्वनि स्थिर होती है। उसका आंदोलन निरन्तर समान रहता है । शब्द की आंदोलन संख्या कम अधिक होती है । ब्रह्मांड में निनादित नाद तरंगें स्थिर हैं। वे स्वर का बोध कराती हैं। हिन्दी वर्णमाला में "ओ" अक्षर को स्वर और "म" का व्यञ्जन कहा जाता है। अत: "ॐ" ध्वनि पहले स्वर है और बाद में व्यञ्जन । "ओ" की ध्वनि ब्रह्मांड में निरन्तर निश्चित आंदोलन संख्यानुसार निनादित होती हुई जब किसी नक्षत्र से टकराती हैं, तब वह ध्वनि "म" कहलाती है। "म" ध्वनि नाद प वर्ग की पांचवां अक्षर है, जिसका सम्बन्ध मानव के होठों से है। यह सप्तस्वरों में चौथे स्थान पर मध्यम स्वर नाम से प्रचलित है । संगीत के विद्वानों ने इस ध्वनि को सर्वाधिक महत्व दिया है । सामवेद गीतियां उदात्ताति स्वरों में गाई जाती थीं। वे स्वर 'मध्यम ग्राम' के थे जिनका श्रुत्यन्तर निम्न प्रकार है---- मध्यम ग्राम-स्वर सा रे ग म प ध नि श्रुत्यान्तर-४३ २४३४२-२२ इस सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें-- "वैदिक छन्दों में निहित है सप्स स्वर" शीर्षक लेख । (संगीत अक्टूबर १९९६) २४२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524592
Book TitleTulsi Prajna 1997 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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