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________________ श्री जयकृष्ण और उनकी कृतियां ___ श्री जयकृष्ण तर्कालङ्कार मुनि परिवार के थे। इन्हें मोनिन् कहा जाता था : इनके दादा का नाम श्रीमौनि गोवर्धन भट्ट था जो प्रकाण्ड पण्डित तथा रामचरणों के सेवक थे। श्री जयकृष्ण के पिता का नाम रघुनाथ भट्ट था जो बहुश्रुत एवं राम के अनन्य भक्त थे। ये चार भाई थे। इनमें महादेव सबसे बड़े थे। उनसे छोटे रामभक्त रामकृष्ण थे । तृतीय स्थान पर जयकृष्ण थे और सबसे छोटे श्रीकृष्ण थे ---- यस्तर्कादिसमस्ततन्त्रकमलवातप्रसादेष्विव, प्रत्यक्षप्रमित: पर: किरणवानन्वर्थगोवर्धनः । सोऽयं पण्डितमण्डलोद्भटरटद्वादीन्द्रवृन्दाग्रणी:, श्रीरामङ्घ्रिनिषेवकः समजनि श्रीमौनिगोवर्धन: ।। रघनाथपदारविन्दसेवावशतस्ततस्य बभूव नन्दनः । रघुनाथ इतीड्यनामगम्यो रघुनाथा िनिषेवकः सुधीः ।। बभूवस्तस्य चत्वारस्तनयाः सुनयाः बुधाः । महादेवाभिधः श्रेष्ठो महाभाष्यसुभाषितः ।। रामकृष्णो द्वितीयोऽसौ रामकृष्णाघ्रिसेवकः । तृतीयो जय कृष्णोऽस्मि श्रीकृष्णो नाम सूद्भवः ।। जयकृष्ण की माता का नाम जानकी था।२१ जयकृष्ण की प्रसिद्धि कृष्ण नाम से थी। श्री जयकृष्ण की जन्मस्थली एवं उनके स्थिति काल तथा अन्य समकालीन विद्वानों के बारे में अद्यावधि कोई निश्चित और प्रामाणिक सामग्री उपलब्ध नहीं है, किन्तु इनके अनुज श्रीकृष्ण भट्ट के बारे में पर्याप्त जानकारी उनके द्वारा रचित वृत्तिदीपिका नामक ग्रंथ की पुरुषोत्तमदेव शर्मा विरचित भूमिका में मिलती है-प्रणेता चास्य पुस्तकस्य विपश्चिदपश्चिमः श्रीकृष्णभट्टो मौनीतिनाम्ना विख्याते वंशे समुत्पन्नः श्रीरघुनाथभट्टस्य सुतः श्रीगोवर्धनभट्टस्य च पौत्रः। तदेतत्पुस्तकान्ते निविष्ट्या पुष्पिकया स्फुटं प्रतीयते । सिद्धान्तकौमुदीवैदिकीप्रक्रियायाः सुबोधिनीटीकाकर्तुमौंनिजयकृष्णस्य चायमनुजः प्रतीयते । तदनुसार श्रीकृष्ण भट्ट का समय पण्डितराज जगन्नाथ के समय से थोड़ा ही पहले अनुमानित होता है, क्योंकि पण्डितराज जगन्नाथ से थोड़े ही पहले पैदा हुए अप्पय दीक्षित के वृत्तिवात्तिक से श्रीकृष्ण भट्ट कुछ अंशों को उद्धृत करते हैं –'यत्तु दीक्षिता: पदं तावच्चतुर्विधं रूढं यौगिक यौगिक रूढं योगरूढं चेत्यादि ।...योगरूढं पङ्कजादिपदमित्याहुरित्यन्तम्२४ और उनकी आलोचना करते हैं। जबकि पण्डित अप्पय दीक्षित के प्रतिद्वन्द्वी पण्डितराज जगन्नाथ का नाम नहीं लेते । पण्डितराज जगन्नाथ का समय शाहजहां के राज्य के समकालीन (१६२८ ईस्वी से १६५८ ईस्वी) था। शाहजहां के बारे में इतिहासकारों का स्पष्ट कथन है कि २४ फरवरी १६२८ ई० में उसका राज्याभिषेक हुआ"क और १८ जून १६५८ ई० में अपने पुत्र औरंगजेब द्वारा वह कैद कर लिया गया"ख तथा २२ जनवरी १६६६ ई० को मर गया। ग अतः श्रीकृष्ण का समय विक्रम संवत् १६८५ के आस-पास ६२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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