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________________ 'तत्पूर्वकम् अनुमानम्-एक विश्लेषण ब्रज नारायण शर्मा महर्षि गौतम ने प्रत्यक्ष-लक्षण व्यक्त करने के पश्चात् अनुमान का लक्षण इस प्रकार विवेचित किया है....... 'अथ तत्पूर्वकं त्रिविधमनुमापं पूर्ववच्छेषवत्सामान्यतोदृष्टं च' ---१.१५५ इस सूत्र में तीन प्रकार के पूर्ववत, शेषवत् एवं सामान्यतोदृष्ट अनुमान प्रदर्शित करते हुए उनके लक्षण और उदाहरण प्रस्तुत नहीं किये गये हैं। सूत्र में 'तत्पूर्वक अनुमानम्' पद द्वारा अनुमान लक्षण व्यक्त किया गया है। सूत्रकार ने अनुमान' का परीक्षण करते हुए इसकी समीक्षा में दो सूत्र और भी दिये हैं ---- 'रोध-उपघात-साद्दशेभ्यो व्यभिचारादनुमानमप्रमाणम्' -[२१११३८] अर्थात् रोध, उपधात और सादृश्य आदि व्यभिचार दोष होने के कारण अनुमान अप्रमाण है । फिर अगले ही सूत्र में सूत्रकार कहते हैं--- ___ 'न एकदेश-त्रास-साद्दश्येभ्योऽर्थान्तर भावात्' ___-[२।१।३९[ नहीं ऐसा नहीं है क्योंकि एकदेश, त्रास, (भय) एवं साद्दश्य (समानता) के आधार पर भूत, भविष्य तथा वर्तमान तीनों कालों में तथा सार्वत्रिक व्यभिचार नहीं देखा जाता है । अतः उक्त दोषयुक्त अनुमानों से भिन्न होने के कारण अनुमान प्रमाण उक्त अनुमान लक्षण सूत्र में प्रयुक्त पद तत्पूर्वक' तथा 'त्रिविध' पद ऐसे हैं जिनके बारे में उत्तरवर्ती व्याख्याकारों में काफी मतवैभिन्य परिलक्षित होता है। भाष्यकार वात्स्यायन ने सूत्रकार के तीनों सूत्रों को ध्यान में रखते हुए तीन प्रकार के अनुमानों की उदाहरण सहित विविध व्याख्या की है किन्तु 'त्रिविध' की भांति 'तत्पूर्वकम्अनुमानम्" की व्याख्या उन्होंने निन्न प्रकार की है । भाष्यकार कहते हैं 'तत्पूर्वकम् इति अनेन लिंगलिगिनोः सम्बन्धदर्शनं लिंगदर्शनं चाऽभिसम्बध्यते । लिंगलिंगनोः सम्बद्धयोदर्शनेन लिंगस्मृतिरभिसम्बध्यते । स्मृत्या लिंगदर्शनेन चाप्रत्यक्षोऽर्थोऽनुमीयते ।' -[न्यायभाष्य पृ. २११] पण २३, बंक १ ५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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