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________________ पीठ के बल पर सीधे लेट जाइए । घुटनों को ऊपर की ओर मोड़कर आराम की स्थिति में ले आइए। दोनों हाथों को कोहनी तक भूमि पर टिकाते हुए एक हाथ को छाती पर व दूसरे को पेट पर रख लीजिए। इस स्थिति में शरीर व मन को यथासंभव शिथिल एवं तनाव मुक्त करते हुए एक गहरा श्वास छोड़ दीजिए । वैसे ही जैसे हम हताशा के समय करते हैं । अब यह कल्पना करते हुए धीरे-धीरे श्वास अन्दर लीजिए कि हवा पेट व कमर गुहा (Pelvic cavity) में भर रही है। यदि ऐसा ठीक प्रकार से किया जाए तो छाती पर रखा हाथ स्थिर रहेगा एवं पेट पर रखा हाथ पेट के ऊपर उठने से ऊपर उठेगा । श्वास छोड़ते समय भी केवल पेट वाला हाथ ही नीचे की ओर जाएगा एवं छाती वाला हाथ लगातार स्थिर बना रहेगा । श्वसन गति शरीर की आवश्यकतानुसार व श्वास से प्रश्वास कुछ लम्बा रखना चाहिए । मन को श्वास पर ही कही भी केन्द्रित किया जा सकता है। इसमे शरीर शिथिल व दिमाग एक शांत प्रक्रिया पर केन्द्रित रहता है। यही कारण है कि इस क्रिया में अक्सर लोगों को गहन शांति की अनुभूति एवं मानसिक तनाव से तत्काल मुक्ति मिलती (२) श्वसन प्रक्रिया में दूसरी महत्वपूर्ण बात यह है कि श्वास-प्रश्वास के बीच अधिक विराम नहीं होना चाहिए । सामान्यतः पलक झपकने से अधिक समय का विराम कमजोर श्वसन तन्त्र की निशानी माना जाता है। (३) तीसरी बात यह है कि श्वसन में लयबद्धता होनी चाहिए। उसमें झटके या जर्क नहीं होने चाहिए। सामान्यतया मानसिक व भावनात्मक आघात के समय ही झटके अनुभव किए जाते हैं । परन्तु सामान्य जीवन में भी ऐसा है तो इसे शरीर व मन के उचित आराम में बाधक समझना चाहिए । लयबद्ध श्वसन को सोते हुए बच्चे के अवलोकन से आसानी से समझा जा सकता है । (४)अन्त में, यह भी देखना चाहिए कि नाक में या कहीं अन्यत्र आवाज तो नहीं हो रही है । श्वसन शांत एवं विक्षोभरहित होना चाहिए । इसमें श्वास के समय नासाग्र पर शीतलता तथा प्रश्वास के समय हल्की उष्णता की अनुभूति होगी। उपरोक्त चारों बातें हमारे श्वसन के ऐसे सरल एवं प्राकृतिक लक्षण हैं जो चौबीसों घंटे हमारी सामान्य आदत बन जानी चाहिए। प्राणायाम वास्तव में अत्यन्त जटिल एवं सूक्ष्म प्रक्रिया है जिसे अत्यन्त सावधानी के साथ बिना किसी दक्ष एवं अनुभवी प्रशिक्षक की मदद के नहीं करना चाहिए। आध्यात्मिक उत्थान चाहने वालों के लिए प्राणायाम एक प्रमुख साधन है। पतंजलि मुनि ने इसे आत्मा के प्रकाश पर पड़े आवरण को क्षीण करने वाला बताया है । उनके योगसूत्र के अनुसार 'तत क्षीयते प्रकाशावरणम्" इससे मन की धारणा एवं संकल्पशक्ति में वृद्धि होती है। मनुस्मृति भी कहती है कि प्राणायाम से शरीर व इन्द्रियों के विकार एवं मल वैसे ही दूर हो जाते हैं जैसे तपाने पर सोने के। ___ प्राचीन और अर्वाचीनकाल में प्राणायाम पर काफी अनुसंधान हुआ है। जिससे बंर २३, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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