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________________ इसकी क्रियाओं की काफी हद तक वैज्ञानिक व्याख्या संभव हो सकी है। परन्तु वास्तव में शरीर की कार्य प्रणाली इतनी जटिल व इतने सूक्ष्मस्तर पर भी सम्पन्न होती है कि उनका समग्र अवलोकन आसान कार्य नहीं है । हमारी सम्पूर्ण अन्तः चेतना के साथ इसके रिश्तों को ठीक-ठीक परिभाषित करना तो और भी कठिन कार्य है । प्राचीन ऋषियों ने चेतना के मूल में जाने के जो मार्ग खोजे थे वे निश्चय ही शरीर की जटिलता में उलझे बिना खोजे होंगे । हम भी इन जटिलताओं से बचते हुए यही तर्क उपस्थित करना चाहेगें कि जिस प्रकार बिना दवा के सामान्य खानपान में फेर बदल एवं उनकी प्रक्रियात्मक आदतों में सुधार से कुछ रोगों' को ठीक करना एवं उनसे बचे रहना संभव है उसी प्रकार का कार्य श्वसन की कुछ खास विधियों की सहायता से भी किया जा सकता है । निश्चय ही इन्हें दवा का विकल्प नहीं कहा जा सकता है । परन्तु इनके नियमित अभ्यास के जो दीर्घकालीन लाभ हैं वे दवा से कभी भी प्राप्त नहीं किए जा सकते। इन क्रियाओं का मूल मकसद केवल स्वास्थ्य व दीर्घ जीवन ही नहीं बल्कि मन की सुप्त पड़ी शक्तियों का विकास भी जो जीवन संघर्ष में सफलता की अनिवार्य आवश्यकता है । ये धैर्य, उत्साह, संकल्प व इच्छा की शक्तियां हैं। शारीरिक स्वास्थ्य में इन क्रियाओं से मांसपेशियों की मजबूती में वृद्धि उतनी नहीं होती जितनी कि शरीर के हल्केपन, चुस्ती-फुर्ती एवं उनकी रोगप्रतिरोधकता में वृद्धि होती है और यदि श्वसन में इतना सामर्थ्य है तो उसे शरीर व चेतना के बीच सेतु कहना अनुपयुक्त न होगा । I २. Jain Education International -डॉ. दीपिका कोठारी परियोजना अधिकारी जैविभा संस्थान, लाडनूं एवं श्री रामजो मीना ५०, प्रधानमार्ग, मालवीयनगर जयपुर-१७ For Private & Personal Use Only तुलसी प्रशा www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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