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( axis) में
पर
बास्ति व्यास और १ हाथ लम्बी काठ की होती है । इस नेमि की आरपार छेद होता है । जिसे नाभि कहते हैं । लोहे के धुरे ( axile ) यह पहिया चढ़ा दिया जाता है । इसी धुरी पर पहिया घूमता है। जिससे नाभि और धुरी में घर्षण होता है तो धुरा गर्म हो जाता है । घर्षण को कम करने के लिए धुरी पर तेल लगाया जाता है कि धुरा गर्म न हो । झटकों में कभी-कभी यह धुरा टूट जाता है, अथर्ववेद मंत्र (९-९-११) कहता है कि बह्माण्डरूपी पहिए की परमात्मा रूपी धुरी न कभी गर्म होती है, न कभी टूटती है । सदा एक रस रहता है। स्वयं नहीं घूमता । ब्रह्माण्ड को घुमाता है । यजुर्वेद (४०-५) मंत्र कहता है- तदेजति तन्नैजति । परमात्मा सदा एक रस रहता है । मजबूती के लिए गाड़ी के काठ के पहिए पर लोहे की हाल चढ़ी होती है । खगोल रूपी पहिए पर मानो २७ नक्षत्रों रूपी हाल चढ़ी है । खगोल तथा गाड़ी के पहिए की समता पर मानो । शतपथ ब्राह्मण कहता है -- अस्मिन् वेद: निहिता विश्व रूप:- जो ब्रह्माण्ड में है वही वेद में है । जो वेद में लिखा है वही सृष्टि में है । वेद सृष्टि की पाठ्यपुस्तक है तो सृष्टि इसकी प्रयोगशाला है ।
केलिफोर्निया स्थित दूरबीन ( Telescope ) से वैज्ञानिकों ने अनन्त आकाश गंगाएं (milky way) देखी हैं । हमारी आकाश गंगा मन्दाकिनी की हालनुमा परिधि पर स्थित हमारा सौर मण्डल एक तुच्छ अंश सा प्रतीत होता है । इसमें ६० लाख तारे तो गिन लिए हैं । दूरियां महान हैं । प्रकाश वर्ष आदि इकाइयों से मापते हैं ।
अक्ष
अथर्ववेद ( ८-२-२१) मंत्र सृष्टि की आयु एक कल्प अर्थात् १००० चतुर्युग ४३२×१०° वर्ष कहता है । यही मन्त्र युगों का अनुपात ४ : ३ : २ : १ कहता है जिससे कलि ४३२०००, द्वापर ८६४०००, त्रेता १२ ९६०००, सत् युग १७ २८००० मानव वर्ष होता है । चारों का योग ४३२०००० वर्ष = १ चतुर्युग = १ महायुग कहलाता है । ब्रह्मा का एक अहोरात्र = १ सृष्टिकाल + प्रलय काल = २ कल्प आयु १००x३६० x २ = ७२००० कल्प होती है । इसे महाकल्प कहते काल परान्तकाल (बृहदारण्यक उपनिषद अनुसार ) है ।
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होता है । ब्रह्मा की
हैं । यही मोक्ष
ज्योतिष में एक सौर अहोरात्र में ३० मुहूर्त की साधारण इकाई है । ४८००० मुहूर्त, १ काष्ठा = १०००० मुहूर्त है ।
००, १०००
१० लाख
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यजुर्वेद (२७-२) मन्त्र दशमलव प्रणाली में ९, १०, १००, को १०९, १० कोड़ को १०, १० पद्म को १०११, १० शंख को १०" अर्थात् १९ अंकों वाली संख्या देता है ।
१ लव
न्याय दर्शन परमाणु को पदार्थ का छोटे से छोटा कण अदृश्य, अकाटघ, कण कहता है । ६० परमाणु का एक अणु, दो अणु का द्वघणुक जो स्थूल वायु के कण कहलाते हैं । जो दिखाई नहीं देते परन्तु स्पर्श से ज्ञात होते हैं ।
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श्री अनन्त शर्मा (ब्यावर ) महाभारत में भी इसी प्रकार की सूक्ष्म दीर्घ मापों की चर्चा कहते हैं । वाल्मीकि रामायण में १० को इकाई मानकर १०० = १०' से शुरू
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खंड २३, अंक १
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