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________________ हैं । २६ वर्ष में ३० तिथियां क्षय होने से इस त्रुटि की पूर्ति प्रति २३ वर्ष बाद १ अधिक मास लगा, सौर वर्ष पूरा करने के लिए ऋग्वेद मंत्र (१-२५-८) एक अधिक मास (१३ वां मास) लगाता है । इतने पर भी कुछ त्रुटि शेष रह जाती है । वेद अनुसार वृत्ताकार गति मानकर वृत्त के ३६० भाग कर सूर्य के वृत्त को केन्द्र पर रखकर वृत्त की परिधि पर पृथ्वी सौर परिक्रमा कर रही है । केन्द्र पर एक व्यास उत्तर-दक्षिण तो दूसरा व्यास पूर्व पश्चिम खींच देने पर केन्द्र पर स्वतः ९०-९० डिग्री के चार समकोण बन जाते हैं । इसी प्रकार १-१ डिग्री के ३६० व्यास खींच देने पर परिधि भी सरलता से ३६० भागों में बट जाती है । यह ३६० अरे ३६० अहोरात्र बन जाते हैं । पृथ्वी एक अहोरात्र में १ डिग्री सम गति से सौर परिक्रमा करती रहती है । वेद में कितनी सरलता से पृथ्वी अण्डाकार असम गति को वृत्ताकर सम गति में बता दिया गया है । १२ x ३०=३६० का सरल आधार वेद ने युगों, कल्पों आदि की गणना में कितनी सरलता प्रदान करता और याद बना रहता है । १ युग १२ वर्ष तथा मानव की आयु १०० वर्ष से कलि युग की संख्या १००४ १२४३६० =४३२००० मानव वर्ष आ जाते हैं । इसी पर एक शून्य लगा देने से महायुग-चतुर्युग हो जाता है । इसे १००० से गुणा करने पर कल्प आ जाता है । कल्प से महाकल्प, मोक्ष की अवधि परान्तकाल १००४ ३६०४२७२००० कल्प आ जाता है। वेद की गणना में सरलता है। उसकी महानता है। पृथ्वी, चन्द्रमा आदि की सौर परिक्रमा दीर्घवृत्ताकार (Elliptical) अण्डाकार है परन्तु ज्योतिष में उन्हें वृत्ताकार मानकर गणना की जाती है। वृत्ताकार व अण्डाकार परिधियों में अन्तर है। खगोल में दूरियां इतनी विशाल हैं कि काल गणना में प्रतिशत अन्तर न्यून होने से नगण्य है । पृथ्वी का परिक्रमा काल लगभग ३६६ अहोरात्र तथा चन्द्रमा का ३५४ अहोरात्र होता है। किसी भी गणितीय या वैज्ञानिक विधि से इन परिधियों को इन अंशों में बांटना असंभव है। इनका औसत ३६६+३५४/२= ३६० होता है । ऋग्वेद मंत्र (१-१६४-४८) भी १२ मास का वर्ष ३६० अहोरात्र कहता है । इस अवधि को ४, ६,८,१२ अंशों में बांटना अत्यन्त सरल है। यही मंत्र १२ राशियों से १२ मास का वर्ष कहता है । १२४३०=३६० होने से १ मास ३० अहोरात्र, ३० तिथियों का हो जाता है। खगोल रूपी पहिए की १२ राशियां बैलगाड़ी पहिए को १२ पुठी (प्रधयः) मन्त्र देता है । इसमें तीन नाभियां, ३६० अहोरात्र रूपी ३६० अरे (spokes) जुड़े हैं। मजबूती के विचार से गाड़ी के पहिए में ६ पुठी ही होती है । यह ६ ऋतुओं के प्रतीक हैं । एक ऋतु दो मास की हो जाती है। कितनी वैज्ञानिक व्याख्या है । इन्हीं १२ राशियों के आधार पर घड़ी के मुंह (dial) पर १२ घंटे लिखे जाते हैं । पहिए की पुठी से जुड़े अरे पहिए की नेमि में ठुके होते हैं । मानों खगोल रूपी पहिए की १२ राशियों में प्रत्येक में ३०-३० अहोरात्र रूपी अरे ठके हैं जिनके सिरे खगोल रूपी नेमि में ठुके हैं । बैलगाड़ी में वह नेमि कोई एक १४० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524591
Book TitleTulsi Prajna 1997 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1997
Total Pages216
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size9 MB
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