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________________ आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है। समुद्रमंथन के प्रसंग में 'अमृत' पद आया है जिसे 'उत्तम' कहा गया है।८ जरामरण से मुक्त होकर 'अमर' बनने की अभिलाषा से प्रेरित होकर देवों और दानवों ने समुद्र मंथन किया। रामायण के अनुसार मोक्ष हो जाने पर 'सनातन ब्रह्मलोक' की प्राप्ति होती है। श्रीराम के विषय में कहा गया है कि ग्यारह हजार वर्ष राज्य करने के अनन्तर श्रीराम अपने परमधाम ब्रह्मलोक को जाएंगे।" रामायण में इस शरीर से ही देवताओं की परमगति प्राप्त करने की बात कही गई है। इस प्रकार यहां मोक्ष को परमगति, उत्तमगति, परमसुख तथा क्षय रहित अवस्था कहा गया है। मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में सत्यवादिता और सत्य कर्मों को स्वीकार किया गया है। कहा गया है कि सत्यवादी इस लोक से परे अक्षयलोक को प्राप्त करता है। अन्यत्र भी कहा है कि जो सत्य धर्म के उपासक हैं उनको मृत्यु का भी भय नहीं होता।" अनेक उद्धरणों से ज्ञात होता है कि जप, तप को ब्रह्मलोक प्राप्ति का साधन माना जाता था। ७. वाल्मीकि रामायण में लोकायतवाद लोकायत एक भौतिकवादी विचारधारा है जिसे नास्तिक विचारधारा भी कह सकते हैं। वाल्मीकि रामायण में इसके प्रतिनिधि हैं— महर्षि जाबाल, जो श्रीराम को वन से अयोध्या लौटाना चाहते हैं और इसीलिए उन्हें तरह-तरह से भौतिकवादी बातें समझाते हैं । उनके अनुसार संसार में कोई किसी का बन्धु नहीं होता, मनुष्य अकेला ही नष्ट हो जाता है ।५ कोई किसी का माता-पिता नहीं होता ये सम्बन्ध तो निमित्त मात्र होते हैं। इन सबमें आसक्ति नहीं रखनी चाहिए। ये सब सम्बन्ध तो वैसे ही अस्थायी हैं जैसे यात्री का धर्मशाला या सराय से सम्बन्ध होता है। अष्टका आदि श्राद्ध कर्म जो पितरों के लिए किए जाते हैं, वे सभी व्यर्थ हैं क्योंकि मृत व्यक्ति अन्न कैसे ग्रहण कर सकता है। यह तो वस्तुतः अन्न का नाश ही है । यज्ञ, पूजन, दान, दीक्षा, संन्यास ग्रहण करना आदि भी मूर्तों के कार्य हैं। उनका कथन हैपरलोक कुछ नहीं है, इहलोक ही सब कुछ है। प्रत्यक्ष पर विश्वास करना चाहिए परोक्ष पर नहीं। एक अन्य स्थल पर श्रीराम भरत से पूछते हैं-"तात ! तुम कभी लोकायतिक बुद्धि वाले ब्राह्मणों का संग तो नहीं करते क्योंकि वे मूर्ख होते हुए भी अपने को पण्डित मानते हैं और परमार्थ में विश्वास नहीं रखते हैं। वे वेद आदि प्रमुख धर्मशास्त्रों के विरोधी होते हैं और निरर्थक तर्क किया करते हैं।"५१ . इन सब सन्दर्भो से स्पष्ट है उस काल में नास्तिक विचारधारा के जन भी समाज में विद्यमान थे। ८. वाल्मीकि रामायण में ताकिक दर्शन वाल्मीकि रामायण में न्याय-वैशेषिक जैसे तार्किक दर्शन के बीज भी उपलब्ध होते हैं । श्रीराम के उत्तम गुणों का वर्णन करते हुए वाल्मीकि कहते हैं कि वे न्याययुक्त पक्ष के लिए बृहस्पति के समान एक से बढ़कर एक युक्तियां देते थे। कई स्थलों पर १२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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