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________________ से निर्वासित राम मां कैकेयी को दोषी नहीं ठहराते, अपितु कृतान्त (देव) को ही इस निर्वासन का मूल कारण मानते हैं। इतना ही नहीं, शोकाकुल भरत को सान्त्वना देते हुए श्रीराम कहते हैं— मनुष्य अपना स्वामी स्वयं नहीं है, उसको कृतान्त सदैव इधर-उधर खींचता रहता है । और काल ही इसी प्रकार अन्य अनेक सन्दर्भ ऐसे मिलते हैं जो भाग्य, काल या कृतान्त की दुरतिक्रमणीयता को दर्शाते हैं । किष्किन्धा काण्ड में श्रीराम कहते हैं - " जगत् में नियति (काल) ही सबका कारण है । वही समस्त कर्मों का साधन है समस्त प्राणियों को विभिन्न कर्मों में नियुक्त करने का कारण है । * का उल्लंघन नहीं कर सकता, वह काल कभी क्षीण नहीं होता । २५ काल की किसी से बन्धुता नहीं होती, मित्र या जाति बिरादरी का कोई सम्बन्ध नहीं होता, काल कोई हेतु नहीं होता, किसी का पराक्रम उस पर नहीं चलता कारण रूप काल आत्मा (जीव ) के वश में भी नहीं है ।" काल भी काल पुनः कहा है तात्पर्य यह है कि काल, नियति या कृतान्त अटल और अलंघ्य है । ५. मानव जीवन अनित्य है मृत्यु अवश्यम्भावी संसार की प्रत्येक वस्तु अनित्य, क्षणिक और शीघ्र - विनाशी है । यह अटल सत्य है समस्त वैदिक औपनिषदिक साहित्य में भी इस तथ्य को दर्शाते हुए उद्धरण मिलते है । क्षणभङ्ग का सिद्धान्त बौद्ध दर्शन का तो आधारभूत ही है । वाल्मीकि रामायण में भी अनेक सन्दर्भ ऐसे मिलते हैं जो जीवन को विनश्वर और मृत्यु को अवश्यम्भावी घोषित करते हैं । शोकाकुल भरत को शिक्षा देते हुए राम कहते हैं— " समस्त संग्रहों का अन्त क्षय हैं, लौकिक उन्नति का अन्त पतन है, संयोग का अन्त वियोग है और जीवन का अन्त मरण है । होने पर गिर जाता है उसी प्रकार मनुष्य हो जाता है ।" इस संसार में सभी प्राणियों के दिन-रात लगातार व्यतीत होते जा जैसे सुदृढ़ खम्भे वाला मकान भी पुराना जरा और मृत्यु के वश में पड़ कर नष्ट रहे हैं, आयु शीघ्रता से नष्ट हो रही है वैसे ही जैसे सूर्य की किरणें ग्रीष्म में जल को शीघ्रता से सोख लेती है ।" जैसे नदी का प्रवाह वापिस नहीं लौटता वैसे ही दिन-प्रतिदिन ढलती अवस्था नहीं लौटती, उसका क्रमशः नाश हो रहा है । " उपरोक्त सन्दर्भों से जीवन की नश्वरता और मृत्यु की अटलता का बोध होता है । ६. मोक्ष या मुक्ति की भावना मोक्ष मानव-जीवन का परम पुरुषार्थ है और भारतीय दर्शन का सर्वप्रमुख विचारणीय विषय है । मोक्ष या मुक्ति के सिद्धान्त को सभी सम्प्रदायों ने स्वीकार किया है । मोक्ष शब्द का अर्थ है - सांसारिक दुःख और आवागमन से ऐकान्तिक और आत्यन्तिक निवृत्ति और परमपद की प्राप्ति । वाल्मीकि रामायण में मोक्ष की अवधारणा बहुशः उपलब्ध होती है। यहां मोक्ष के लिए ब्रह्मलोक", निर्वाण", अमृत", निःश्रेयस, अव्ययपद" विष्णुधाम", मुक्ति, २२० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524589
Book TitleTulsi Prajna 1996 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages166
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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