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________________ पुस्तक समीक्षा साहित्य-सत्कार एवं पुस्तक-समीक्षा १. अमृतम् (खण्डकाव्य)-मुनि सुखलाल, प्रकाशक-अखिल भारतीय तेरापंथ __ युवक परिषद्, लाडनू, प्रथम संस्करण--१९९६, मूल्य-२५/- रु० । . प्रस्तुत कृति में भगवान महावीर के उदात्त जीवन की एक झांकी है जो जीवन के शाश्वत मूल्यों की ओर प्रवृत्त करने में सक्षम है। धन्यो वीर: श्रम समशमर्येन नष्टः कषायः-काव्य की यह पंक्ति इसी ओर इंगित करती है। इस कृति में चण्डकौशिक जैसे विकराल सर्प के दंश से पूर्व श्री महावीर की मन:स्थिति एवं उनकी पश्चात्दर्ती प्रतिक्रिया को बड़े प्रभावक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। सर्प का कृतज्ञता ज्ञापन कि मैं तिर्यञ्च हूं इसलिए श्रमण नहीं बन सकता किन्तु आपके साक्ष्य से श्रावकत्व स्वीकार करता हूं-भी प्रभावक बन पड़ा है। खण्ड काव्य के अनेकों श्लोक सुन्दर हैं परन्तु उसका दूसरा श्लोक महावीर स्वामी के व्यक्तित्व का सजीव चित्र उपस्थित करता है। उसके हिन्दी अनुवाद में 'कम्बु' को शंख लिखा जाना चाहिए। काव्य के अन्त में शब्द सूची देकर कवि ने अपने मंतव्य को स्पष्ट कर दिया है। अन्त में पं० विश्वनाथ मिश्र के शब्दों में 'इस शत-श्लोक मय काव्य को पढकर यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि इसमें अमृत भरा हुआ है।' -सीताराम दाधीच २. पाइयपडिबिबो-मुनि विमलकुमार; प्रकाशक-जैन विश्व भारती, लाडन प्रथम संस्करण--१९९६, मूल्य-२०/- । ____ कवि ने स्वकथ्य में कहा है कि गुरुदेव तुलसी के आदेश पर उन्होंने प्राकृत भाषा पढ़ी और मुनि श्री ताराचन्दजी की प्रेरणा से उन्होंने जैन कथानकों को काव्यबद्ध करना शुरू किया और ललियंगचरियं, बकचूलचरियं, देवदत्ता, सुबाहुचरियं, पएसीचरियं, मियापुत्तचरियं आदि प्राकृत भाषा काव्यों की रचना हो गई। कलकत्ता विश्वविद्यालय के भाषाशास्त्री प्रो० सत्यरंजन बनर्जी का मानना है कि "बीसवीं शताब्दी में प्राकृत भाषा में ऐसा एक महत्त्वपूर्ण आख्यान काव्य लिखना बहुत ही कठिन है।" उन्होंने इस काव्यकृति में कलाकौशल, वर्णन-माधुर्य, शब्द चयन और वचन-सभी सुन्दर और पाण्डित्यपूर्ण कहे हैं। उन्हें यह कृति पुराने काव्य ग्रंथों से भी अधिक मधुर लगी। ___ आचार्य महाप्रज्ञ ने भी पाइयपडिबिंबो में भाषा का प्रयोग सहज, सरल और खण्ड २२, अंक २ १५९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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