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जीवन जीती है-एक भाग पर कालिदास का अधिकार है और दूसरे पर विलोम का। कालिदास और विलोम के बीच का जीवन, प्रेयसी और पत्नी के बीच का जीवन; उसके पूरे अस्तित्व पर न तो कालिदास का अधिकार; न ही विलोम का। वह कालिदास की ही होकर रही होती: पर न होने का कारण भी स्वयं कालिदास ही है। दो पुरुषों के बीच मल्लिका जिस संबन्ध से जीती है उसमें प्रेम और नफरत, आत्मदान और आत्म-आग्रह, समर्पण एवं विद्रोह का अद्भुत समन्वय हुआ है।
मल्लिका में एक आर्यनारी का आदर्श भी है । तीसरे अंक में कालिदास और मल्लिका अपने पूर्व जीवन को याद कर रहे हैं। कालिदास अपने प्रेम का इकरार करके फिर अथ से आरंभ करने की बात करता है। ठीक, इसी समय अन्दर से बच्ची के रोने की आवाज आती है। कालिदास पूछता है ..... किसके रोने का शब्द है यह ?" मल्लिका जवाब में कहती है ... "यह मेरा वर्तमान है।'" अभी तक हमने जो बातें की, वह तो मेरा भूतकाल था। कालिदास मल्लिका के घर से निराश होकर चला जाता है । मल्लिका उसे पुकारती है और उसके पीछे जाने के लिए चोखट को लांघने की कोशिश भी करती है, लेकिन उसकी नजर अपने हाथों में रहे वर्तमान पर पड़ती है और वह वहीं की वहीं ठहरकर टूट-बिखर जाती है; हार जाती है और जिन्दा लाश होकर घर में लोट जाती है । क्योंकि उसकी आत्मा तो कालिदास के पीछे जा चुकी होती है। काश्मीर जाते समय कालिदास के पास मल्लिका के लिए दो क्षण, दो शब्द रहे होते तो मल्लिका के वर्तमान में बहुत अन्तर होता; और शायद कालिदास को यूं निराश होकर न लौटना पड़ता।
प्रेम एक साधना है । समर्पण एवं त्याग की भावना को सच्चा प्रेम कहा गया है। मल्लिका प्रेम-प्रतिभा है, जीवन्त ! पर कालिदास की 'चूक' (दुष्यन्त, यक्ष, पुरुरवा में देख सकते हैं) मल्लिका को ले डूबती है । बल्कि यूं कहें मल्लिका न तो डूब पाती है और ही तैर पाती है। कुमारसंभव, की रचना के समय पार्वती के रूप में कालिदास के समक्ष मल्लिका ही होती है। पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर शंकर पार्वती को स्वीकार करते है, पर पार्वती की ही तरह साधना करती मल्लिका को शंकर के रूप में कालिदास क्यों नहीं मिलते ?
कहते हैं वियोग के बाद का मिलन चिरकाल के लिए का होता है। 'मेघदूत' में यक्षिणी और यक्ष का मिलन हुआ, पर यक्षिणी--जैसी विरह-वेदना में तड़पती मल्लिका का कालिदास से मिलन तो होता है, पर क्षणिक ! मल्लिका फिर उसी वेदना में क्यों ? !!
प्रेम में हुई छोटी सी भूल घातक परिणाम लाती है। काश्मीर जाते समय कालिदास से हुई भूल से ही भावनाओं के तंतु से बंधी हुई मल्लिका टूट जाती है। और शायद अपने अस्तित्व को टिकाए रखने के लिए ही विलोम का हाथ पकड़ती
"आषाढ़ का एक दिन' नाटक के कालिदास संस्कृत के कालिदास ही हैं या
खंड २२, अंक २
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