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________________ भी मल्लिका स्वयं शादी किए बिना, सिर्फ उसकी राह देखती है। यह एक हकीकत है कि जब व्यक्ति का जीवन सामान्य से असामान्य हो जाता है, तब वह असामान्य व्यक्ति या वस्तु की अपेक्षा रखता है; और वहीं मल्लिका बहुत पीछे छूट जाती है । काश्मीर ते समय कालिदास गांव में आते हैं, पर मल्लिका को मिलते तक नहीं। यहां प्रश्न होता है कि क्या कालिदास के पास समय नहीं था ? संदेश भेजने के लिए कोई सेवक भी नहीं था ? कागज-कलम का अभाव था ? इनका अभाव रहा हो या नहीं, कहीं न कहीं प्रेम ही शिथिल पड़ गया था। कालिदास कहता है.---'मेघदूत' में यक्ष की जो पीड़ा है वह मेरी है और यक्षिणी तुम ही हो । यहां भी एक सवाल होता है-कालिदास मल्लिका की मनः स्थिति को जानता है । उसकी वेदना, पीड़ा को समझता है, फिर भी बिना मिले क्यों चला जाता है ? लगता है कालिदास ही बदल गया है । क्यों ? यश-प्रतिष्ठा पाने के लिए कालिदास ने 'मेघदूत' जैसे अपूर्व काव्य की रचना तो की, पर प्रेम में पागल होकर अपने अस्तित्व को ही भूला देने वाली, मल्लिका को भी भुला दिया। कवि को अब तक की प्रतिष्ठा में जिसकी महत प्रेरणा एवं त्याग मिला हुआ है। यदि कालिदास के पास इस समय मल्लिका के लिए दो क्षण या दो शब्द भी रहे होते तो आखिर में उसे मल्लिका के द्वार से निराश होकर नहीं लौटना पड़ता। मल्लिका स्वाभिमानी है । कालिदास द्वारा प्राप्त हुए इस अपमान का बदला लेने के लिए ही उसने विलोम से ब्याह रचा लिया होगा। __ मल्लिका किसी के रहमोकरम पर जीने वाली औरत नहीं है। उसके घर की हालत देखकर प्रियंगुमंजरी कहती है- "देख रही हूं तुम्हारा घर बहुत जर्जर स्थिति में है। इसका परि-संस्कार आवश्यक है। चाहो, तो मैं इस कार्य के लिए आदेश दे जाऊंगी।" मल्लिका जवाब में कहती है-"आप बहुत उदार हैं। परन्तु हमें ऐसे ही घर में रहने का अभ्यास है, इसलिए असुविधा नहीं होती। कालिदास का प्रेम एक विरोधाभास है । वह मल्लिका को स्मृति में याद रखता है, पर वास्तविक जीवन में भूल जाता है। वह उसे अस्तित्व से वंचित कर देता है, पर अपने अतीत से वंचित नहीं करता। 'कुमारसंभव' या 'मेघदूत' लिखते समय वह जिसे उमा या यक्षिणी के रूप में याद रखता है। वह प्रेम नहीं है; एक पूर्व स्थापित स्मृति का व्याख्यान, एक संचित अनुभव की अभिव्यक्ति मात्र है। वह जीवित-वर्तमान मल्लिका को याद नहीं करता, याद करता है अतीत की एक मल्लिका को जो समय से बंधी हुई है। इसीलिए वह उसकी स्थितियों में हुए परिवर्तनों को नहीं देख पाया। तभी तो तीसरे अंक में उससे मिलने पर सब कुछ बदला हुआ लगता है । उसे अपनी भावनाओं की मल्लिका और वास्तविक मल्लिका में कोई समानता नहीं लगती। मल्लिका का दो भागों में विभाजन हो जाता है । वह स्वयं कहती है-"मैं यद्यपि तुम्हारे जीवन में नहीं रही, परन्तु तुम मेरे जीवन में सदा बने रहे हो ॥" विलोम से विवाह करके शरीर से उसकी हो गई, पर मन से सदा कालिदास के नजदीक रही; इसीलिए मल्लिका की लड़की दीखने में कालिदास जैसी है। मल्लिका दो तरह का तुलसी प्रमा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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