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________________ समीक्षा "आषाढ़ का एक दिन" का कालिदास जयश्री रावल "निराला के बाद हिन्दी साहित्य में जिस आदमी के चारों ओर सबसे ज्यादा 'मिथ' बुनी गई, वह था मोहन राकेश। कुछ उनका व्यक्तित्व ही ऐसा था और कुछ उनके हमदम, दोस्त, प्रशंसक और आलोचक भी ऐसे रहे हैं कि उन्होंने उन्हें या तो निहायत घटिया आदमी के रूप में पेश किया या फिर मसीहा बनाकर रख दिया।" संस्कृत के कालिदास भी कई 'मिथ' से जुड़े। एकदम मूर्ख (वृक्ष की जिस शाखा पर बैठे, उसीको काटने वाले) से लेकर कवि-कुलगुरु तक। मोहन राकेश को कवि कालिदास में अपने जीवन की छाया देख कर ही 'आषाढ़ का एक दिन' के सृजन की प्रेरणा मिली होगी। 'आषाढ़ का एक दिन' के कालिदास से मोहन राकेश कहीं न कहीं अवश्य जुड़ते हैं । कवि कालिदास की तरह मोहन राकेश भी असफल प्रेमी हैं। पर, हर "महान व्यक्ति के जीवन में स्त्री को महती भूमिका होती है, हर आदमी के अचेतन मन में नारी का एक रूप होता है । इस दृष्टि से "आषाढ़ का एक दिन" के कालिदास के जीवन में मल्लिका का स्थान केन्द्र में है। मल्लिका कालिदास की प्रेरणा है, उसकी आत्मा है, उसकी चेतना है । यदि उसके जीवन में मल्लिका नहीं आती तो शायद 'मेघदूत' जैसे काव्य की रचना ही नहीं हुई होती। भावनाओं में जीने वाली मल्लिका कालिदास के प्रति अपने प्रेम सम्बन्ध को सारे सम्बन्धों में श्रेष्ठ मानती है । अतः राजकवि की पदवी मिलने वाली होती है, तब उसे उज्जयिनी जाने, को प्रेरित करती है ! उसे अपने साथ बांधे रखने के बजाय वह उसके लिए विस्तृत क्षितिज के द्वार खोल देती है। वह अभाव में जीती है, पर 'आस्थाभाव' वैसा ही रहता है। वह कहती है "परन्तु मैंने वह सब सह लिया । इसलिए कि मैं टूटकर भी अनुभव करती रही कि तुम बन रहे हो । क्योंकि मैं अपने को अपने में न देखकर तुम में देखती थी।" वहीं कालिदास बेहद आत्मकेन्द्री एवं स्वार्थी हैं, उज्जयिनी जाने के बाद कितने ही सालों तक मल्लिका से मिलने भी नहीं आता, और न ही उसे कोई संदेश भेजता । फिर भी मल्लिका की भावनाओं का विशाल आयाम है कि कालिदास के लिए अपने हाथों से भूर्जपत्रों का निर्माण करती है और सोचती है-जब वो राजधानी से वापस भाएंगे तब इन भूर्जपत्रों की भेंट देकर कहूंगी--इन पत्रों पर आप अपने महान महाकाव्य की रचना करना। जब कालिदास ने उज्जयिनी जाकर वहां की राजकुमारी से शादी कर ली। फिर खण्ड २२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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