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________________ के वृक्ष ने उन्हें एक शांति विश्वविद्यालय खोलने की सलाह दी। उन्होंने वयोवृद्ध वृक्ष के आदेश को सर माथे लगाया और इस विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए उपयुक्त स्थान की खोज में निकल पड़े। नोबेल पुणे के पास आलदी पहुंचे और १ अरब की लागत से शांति विश्वविद्यालय की स्थापना की। इंद्रामणी नदी के तट पर बोलते वृक्षों के पास नोबेल का सपना साकार हुआ।"३ __ ऐसी ही एक भारतीय अनुश्रुति है कि आयुर्वेद वनस्पति कोश के प्रणेता-वैद्य धन्वन्तरि, वनस्पति के पास जाते, उससे उसके गुण दोष पूछते । वे ध्यान लगाकर बैठ जाते और वनस्पति उन्हें अपने सारे गुण दोष बता देती। इसीलिए वे अपने अतीन्द्रिय ज्ञान से वनस्पति के स्पंदनों को समझकर वनस्पति-जगत् की सारी वनस्पतियों का विश्लेषण करने में समर्थ हुए। विचार, ध्वनि भाषा के स्पंदन होते हैं। स्पंदनों को समझने वाला वनस्पति की सांकेतिक भाषा को समझ लेता है। पूर्ण भाषा द्वीन्द्रिय आदि जीवों में होती है पर अव्यक्त भाषा एकेन्द्रिय में भी होती है । जैसे श्रोत्र आदि चार द्रव्यइद्रियों के अभाव में भावेन्द्रियजन्य ज्ञान एकेन्द्रिय को होता है वैसे ही द्रव्यश्रुत के अभाव में भावश्रुत भी उनको होता है। वनस्पति आदि का जलरूप आहार से जीवन चलता है यह उनको आहार संज्ञा है । लज्जवंती लता को हाथ से स्पर्श करने पर वह संकुचित हो जाती है यह उसकी भय संज्ञा है। विरह, तिलक, चंपक, केशर, अशोक आदि वृक्ष स्त्री के आलिंगन से शीघ्र बढ़ते हैं यह उनकी मैथुन संज्ञा है। बेल और पलाश आदि वृक्षों की जड़ें निधान के धन ऊपर फैली रहती हैं यह उनकी परिग्रह संज्ञा है। आहारसंज्ञा, भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा और परिग्रहसंज्ञा ये चारों संज्ञाएं भावश्रुत के बिना हो नहीं सकतीं। भ्रूण में भी भावश्रुत होता है इसकी पुष्टि के लिए डा. चौपड़ा का शोध (रीसर्च) मूल्यवान है । हार्ट केयर फाउंडेसन आफ इंडिया के अध्यक्ष डा. कर्नल के. एल चौपडा के अनुसार गर्भधारण के तत्काल बाद भ्रूण में जागरूकता विकसित होने लगती है और शीघ्र ही उनमें श्रवण अंग भी विकसित होते हैं। गर्भस्थ शिशु मां के शरीर द्वारा उत्पन्न किये जानेवाली सभी ध्वनियों को भ्रूण में सुन सकता है। वह हृदय की धड़कन में अन्तर या शारीरिक संकुचन द्वारा अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त करता है। भ्रण मां के दिमाग में चलने वाले विचारों की ध्वनि भी सुनता है। विचार भी तरंग और ध्वनि ही होती है। भ्रूण मां के विचारों को तरंगों के माध्यम से जान लेता है । यदि मां की अनचाह का गर्भस्थ शिशु को यदि भान हो जाता है तो अधिकतर मामलों में अनचाहे गर्भ का स्वत: गर्भपात हो जाता है। डा. चौपडा ने मनुष्य को परिलक्षित कर शोध किया है। परन्तु यह नियम प्रत्येक जीव पर घटित हो सकता है। वनस्पति जीव भी इस नियम का अपवाद नहीं है । वनस्पति के भ्रूण में भी भावश्रुत है ऐसा न मानने का कोई कारण नहीं है। ११८ तुलसी प्रशा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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