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वनस्पतियों में जीवेन्द्रिय संज्ञान
हा मुनिश्री चंद्र 'कमल'
आचार्य सिद्धसेन के अनुसार भगवान् महावीर द्वारा एक षट्जीवनिकाय का प्रतिपादन ही उनकी सर्वज्ञता के लिए पर्याप्त है। त्रस को छोडकर एकेन्द्रिय के पांच निकायों का जीव रूप में प्रतिपादन किसी दर्शन में नहीं है। वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बसु ने वनस्पति को चेतना युक्त प्रमाणित कर इसी सत्य को उद्घाटित किया है। शेष चार निकाय अभी अन्वेषण मांगते हैं।
___ वनस्पति में एक स्पर्शन इंद्रिय है। यह तथ्य प्रसिद्ध है। किसी अपेक्षा से उसमें पांचों इंद्रियां हैं, यह प्रकाश विशेषावश्यकभाष्य देता है। उस भाष्य में प्रतिपादन है कि पृथिवी आदि केन्द्रियों में श्रोत्र, चक्षु, घ्राण और रसन इंद्रियों की निवृत्ति और उपकरण रूप द्रव्य इंद्रियों का अभाव है । फिर भी एकेन्द्रिय में सूक्ष्म और अव्यक्त श्रोत्र आदि चारों इंद्रियों की लब्धि तथा उपयोग रूप भावेन्द्रियों का किंचित् ज्ञान होता है । वनस्पतियों में यह भावज्ञान स्पष्ट दिखाई देता है।' भावज्ञान के उदाहरण . कोयल के द्वारा मधुर पंचम स्वर सुनने से वनस्पति के विरहक (वृक्ष विशेष) आदि वृक्षों में शीघ्र ही कुसुम-पल्लव आदि विकसित होते हैं, इससे श्रोत्र भावेन्द्रिय का ज्ञान प्रमाणित होता है।
सुंदर स्त्री के लोचन-कटाक्ष को देखने से तिलक आदि वृक्षों में कुसुम आदि का आविर्भाव हो जाता है । यह चक्षु भावेन्द्रिय ज्ञान को सिद्ध करता है।
सुगंधित गंध वस्तुओं को शीतल जल में मिश्रित कर चंपक आदि वृक्षों में सिंचन से वे जल्दी खिलते हैं। इससे घ्राण भावेन्द्रिय का ज्ञान स्पष्ट होता है। रंभा से भी अधिक रूपवती के मुख से निकले हुए स्वच्छ स्वादिष्ट और सुवासित मदिरा के कुरले का आस्वाद मिलने से बकुल आदि वृक्ष शीघ्र खिलते हैं। यह उनके रसन भावेन्द्रिय ज्ञान का चिन्ह है।
शृंगार-युक्त स्त्री के आलिंगन से कुरबक वृक्ष और पैर के प्रहार से अशोक आदि वृक्ष जल्दी बढते हैं। यह स्पर्शन भावेन्द्रिय ज्ञान का स्पष्ट प्रमाण है । इस प्रकार सिद्ध है कि जैसे दूसरे जीवों में श्रोत्र आदि चार द्रव्य-इंद्रियों के अभाव में भावेन्द्रियजन्य ज्ञान उनको होता है, वैसे ही वनस्पतियों को भी द्रव्यश्रुत के अभाव में भावश्रुत ज्ञान होता है। इसी तथ्य का वाहक एक समाचार राजस्थान पत्रिका' में छपा है
___ "पेड़ों के स्पंदन को जड़ तक समझने वाला, उनसे घंटों बतियाने वाला और उनके सुख दुःख बांटने में सक्षम क्लायस नोबेल को एक बार सात सदी पुराने पीपल
खण्ड २२, अंक २
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