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________________ है । भार्गवर्ती पुद्गलों से स्पर्श न होना यह सिद्ध करता है कि उसकी गति पर अन्य पुद्गलों की स्थिति का प्रभाव नहीं होता । ऐसी कल्पना इन कणों की तरंग रूपता से ही युक्ति संगत मानी जा सकती है । जैन दर्शनों में "एक उपचय अपचय प्रकट करने वाली धारणा भी है। जो कि तरंग सिद्धान्त से काफी मिलती है । यहां यह स्पष्ट कर देना उचित होगा कि क्वान्तम यान्त्रिकीय धारणाओं में स्याद्वाद जैसी भाषा, कुलकों (Systems) की गति स्थिति के निश्चयन में अपूर्णता के कारण होती है जबकि स्याद्वाद में ऐसी बात नहीं है । कुछ भी हो, स्याद्वादीय भाषा क्वान्तम यांत्रिकीय भाषा से साम्य रखती है । उदाहरण के लिये बेंजीन रिंग (Benzen Ring) का केस लें । इसकी द्विक बन्धों (Double Bonds) से जन्य दो अबस्थाएं है । जिनमें अनुनाद ( Resonance) होता है । H H H-C❘ H-C ५० C-H -H Jain Education International HC | H-C H यदि कैकुले सूत्र के परिपेक्ष्य में या बन्द है ? तो उत्तर में खुला है, भंगिये ही होंगी । खुला भी है, बन्द भी है, अनिर्वचनीय है, ऐसी भाषा ही वास्तविक स्थिति को द्योतित करती है । क्योंकि अनिश्चितता राद्धान्त से गणित करने पर ज्ञात होता है कि बैंजीनरिंग की दो अवस्थाओं में परिणति की दर एक सैकिण्ड में करोड़ों बार है । ऐसी स्थिति में हमारा कोई भी एक निश्चयात्मक उत्तर जैसे खुला है या बन्द है इत्यादि अर्थहीन है क्योंकि वाक्य उच्चारण करते समय ही करोड़ों बार परिवर्तन हो चुके हैं । अतः स्पष्ट है कि स्याद्वाद की ही भाषा उपयुक्त है। ऐसी धारणाओं की क्वान्तम यान्त्रिकीय सिद्धान्तों से तुलना करना एक विशेष अनुसंधेय कार्य है । यह प्रश्न किया जाए कि बन्द है, अनिर्वचनीय है C-H /CH For Private & Personal Use Only बैजीन रिंग खुला है इस त्रिक से बनी सात - ( डॉ० शक्तिधर शर्मा) प्रोफेसर, फिजिक्स विभाग, पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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