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________________ ४५ जैनागमों का सुवर्णाक्षरी मूलपाठ जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्व विद्यालय) लाडनूं के वर्द्धमान ग्रंथागार में ४५ जैनागमों का एक दुर्लभ संग्रह-सुनहरे अक्षरों में मुद्रित मूलपाठ सुरक्षित है। यह लोहे की चार पेटियों में सुरक्षित १३३६ पत्रकों में मुद्रित मूलपाठ है जो श्रीमान् झवेरी नेमीचंद नेगीनचंद वकीलवाला, दीपचंद नीवास, सूरत की ओर से ग्रंथागार को भेंट में मिला है। जैनागमों का यह मूलपाठ--"श्री सुधर्म स्वामि श्री जम्बू स्वामि श्री प्रभव स्वामि श्री शय्यंभव श्री यशोभद्र श्री संभूतिविजय श्री स्थूलभद्र श्री सुहस्तिसूरि श्री सुस्थितसुप्रतिबुद्ध १० श्री इन्द्रदिन्न श्री दिन्नसूरि श्री सिंह गिरि श्री वज्रस्वामि श्री वज्रसेनचन्द्र गच्छेश श्री चंद्रसूरि वनवास गच्छेश श्री सामन्तभद्रसूरि श्री वृद्धदेवसूरि श्री प्रद्योत नसूरि श्रीमानदेवसूरि २० श्रीमान तुंगसूरि श्री वीरसूरि श्री जयदेवसूरि श्री जयानन्दसूरि श्री विक्रमसूरि श्री नृसिंहसूरि श्री समुद्रसूरि श्रीमानदेवसूरि श्री विबुधप्रभसूरि श्री जयानन्दसूरि ३० श्री रविप्रभसूरि श्री यशोदेवसूरि श्री प्रद्युम्नसूरि श्रीमान देवसूरि श्री विमलचंद्रसूरि श्री उद्योतनसूरि बृहद्गच्छाधीश श्री सर्वदेवसूरि श्री देवसूरि श्री सर्वदेवसूरि यशोभद्रसूरि ४० मुनिचंद्रसूरि अजितदेवसूरि विजयसिंह सूरि सोमप्रभसूरि तपोगच्छेश तपस्वि हीरलाजगच्चंद्रसूरि देवेन्द्रसूरि धर्मघोषसूरि सोमप्रभसूरि सोमतिलकसूरि देवसुन्दरसूरि ५० सोमसुन्दरसूरि मुनि सुन्दरसूरि रत्नशेखरसूरि लक्ष्मीसागरसूरि सुमतिसाधुसूरि हेमविमलसूरि आनन्दविमलसूरि विजयदानसूरि हीरविजयसूरि सहजसागर ६० जयसागर न्यायसागर जीतसागर मानसागर मयगलसागर पद्मसागर स्वरूपसागर नाणसागर मयासागर गौतमसागर ७० झवेरसागरजी पादकमल चंचरीकानन्दसागर सूरिणा चत्वारिंशदेव कुलिका शिखर युक्त प्रासाद चतुष्क श्री शाश्वतजिनप्रासादयुते मंदिरे सकला आगमाः शिलासु प्रतिष्ठापिता:"---सौराष्ट्र देश के पादलिप्तपुर के श्री सिद्धाचलाद्रित लहट्टिकागत श्री वर्धमान जैनागम मंदिर में शिलाओं पर उत्कारित और शोधित है। इन जैनागमों में श्री देवद्धिगणि क्षमाक्षमण द्वारा पुस्तकीकृत आहेत सिद्धान्तों में श्री आचारांग प्रभृति ११ अंग; श्री औपपातिक प्रभृति १२ उपांग; श्री चतुःशरण प्रभृति १० प्रकीर्णक; श्री निशीथ प्रभृति छह छेद सूत्र; श्री आवश्यकादि चार मूल सूत्र; श्री नन्दी और अनुयोग-कुल ४५ आगमों का मूलपाठ है। इस मूलपाठ को श्री राजनगरीय उत्कृष्ट मुद्रणालयाधिपति पटेल पुरषोत्तमदास शंकरलाल ने सौराष्ट्र देश के पादलिप्तपुर की 'श्री वर्धमान जैनागम मंदिर संस्था' के लिए मुद्रित करके प्रकाशित किया है। खण्ड२२, अंक २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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