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________________ ,, ४२. ते पुण-तुटी एक आवलि --विवाहि करी सोहीका पावइ ।। ज वाध ताह काम्वदेवह मालवानु जइसी भावइ पाकहि रितुफल जिआ जे लोकहिं लाछिहि करउ निवासु भलि उपरि........"व दुलाहं ऊजला/ ,, ४३. /करी....... .''तेहर सवह वेसह करीज लाछिस अवहरी कोपडहिर करउ ज गोरी तहि सिंदूर वेसुज सांग्वली तहिर पाटणिइ करउ (मं... . .........."ढ) कोस सो भंवर/* , ४४. /..............."छाया ते इं पर लाधी। जहि आवति (...) अयणुइ ढि अर अति सुठु खाधी ।। तुम्हई...'लं...."तुम्हहिं सरिसउ बोलहिं को जूझइ । ,, ४५./.........." (इवानइ) जोवथु काजुढ माथु बूझा ॥ एह इसी सुवेसुजहि आविउ पइ सइ। ............"(सो घरउ)राउल बूचइ ।। अउ माणउ को"""""मह"""" ,, ४६. /........॥ रोडे राउलवेल बखानउ । (सकल) भासह जइसी जाणउ । *उपर्युक्त मूलपाठ की ४३वीं पक्ति के अन्तिम शब्द-कोस सो भंवर' के नीचे. लालेख में दाहिनी ओर पंक्ति-१४,४५, ४६ समाप्त हो गई है और वहां 'कदलीवन' करा हुआ है जो लेख समाप्ति का सूचक है। २२, मंक २ १९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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