SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 103
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ,, ३७. /ते एकावली गलइ एक बांधी (सो) सइराइसाइ भावइ । जणु मुंहचंदु उलगणहुं नखतवाल सतावीस गलइ अइसउ भावइ ।। थण रूपह्वला ऊचा वाडुला पीणा ,, ३८. सोनाह करा मंगलकलस जिसा भा/वहिं ।' आनुकि काम्वदे उहकरीह घरह करिउह तासु सोह पावहिं । तिवलिहिं माझि रोमराइ कइसी धरइ जो सोहि करइ ।' पांखइ दुहु आंधह जूझ तह निवाडा करइ ।। , ३९. तहं मांडण सातउ/(मुणाणिहुं) मोतीहुं करउ एकु जो हारू । सो सोह देख तह अइसउ भावइ अणसारउ अणसारउ हुं अउ एडं संसारू ।। जे पुण जंदही ते हाथही पायही पइहरिआ सोना केरा चूड़ा। , ४०. सो देखि/.............."जे वेस ते सब भावहिं कूड़ा। तेर तइसी बोडबाही पड़िकरी पइह्रीज कांचुली भइ रहा नइ सोह कवि चहइ । अरे काम्वदेउइ सनाह किय उत्पात तुम्ह , ४१. नहीं छोडिहउ तिहु/......"कहइ ।' पइह्नणह निरी पेहरिआह काछड़इ । सहज सोह सुकि कउणु वेस पाम्बइ । आवेसहि छिवि अरे गोड होगोल्लाहिं बोलउ जो जस भावइ । १. पंक्ति ३७ में कवि गलहार को मुखचन्द्र से निकले २७ नक्षत्र भौर तरूणी के उन्नत उरोजों को रूपहला, वादीला, पुष्ट, सुनहरा, मंगल कलश जैसा कहता २. मिलाइये गहिरणाहिराय रोमावलियहिं तोच्छोयर सोहंतहि तिवलियहिं । ___-धम्म परिक्खा ४२३.५ ३. मिलाइये-- हरिण-सरिस्सा णअणा, कमल-सरिस्सा वअणा । जुवजण-चित्ताहरिणी, पियसहि ! दिट्टा तरूणी॥ बब्बर कवि १८ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy