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, २९. इहां अम्हार/इदुभगी खोप करिउ बोझइ। .
तुहि सरिखउ कहाइ उ माथिएउ किं (सीझइ)॥) खोपहिं ऊपरि मेलहहउ दीनउ वानते किसउ भावइ ।
जिसउ सिंदुरिअउ रजायसु काम्वदेउह करउ नावइ ।। ३०. नि/लाडु रतु रूरउ सुपवाण न मान्ह उन ऊचउ ।
सो देखिउ अठकहि करउ चांदुअ इसउ भावइ ।। केर एह ऊडिलउ जनउ ठेचउ चउहंदु रदुइ ।
तुररीहि सान्हीहिं आडाढ आखिहिं क रइ गुणइ ।। ,, ३१. ज/इसउ काम्व करउ धनुहउं चढाविपउ
निढालि टीके तुरूरे कीएं तें काम्वहउ । जइसी करीहि भालिहि करउ का जणवियउ ।।
सीन्हाहं पुडहं नकितुरूरउ सुरेखु सोइ , ३२. वो माहे रावह ऊतरिअउ/अइसउ करीउ तुहुं लेखु ।
आखिर फाटा तीखा ऊजला तरला ते वानति जीभइ खूझइ। तइसउ हथिआरू पाविउ काम्वदेउ जगही कांइ करिसी
अइसउ बृहस्पति ही नउ सूझइ ॥ " ३३. /आंखिहि रातु रूरउ काजलु दीनउ कइसउ ।
जणु चाखहु करइ भवइ किहयउ जिसउ ॥ पुनि वहि करउ चांदु फाडिउ
हरिणु पाखइ घालिउ दुइ कपोल जिसा किआ । ,, ३४. देखतह/सबहं तरूणाहं अपाविवे करी
खणुसइ धस धस पडहिं हिंआ ।। कनवा सही कान कांटा वइ करउ खूटउ बोलु ।
के के केतउ न खपिअउ एहिं जगी आधि न मोलू ।। ,, ३५. तेन्हर पइ हिंआ धडिव/न किसा भावथि ।
जणु पुनिवहि पुनिवहि करी चांदके अइसहि करउ सुहावउ बोलु सुअण —फडिउ (आप) नावथि ।।
तेहि करइ तुलिउइ उपइलेउ वइ सुकवि सोंह लाधी। ,, ३६. जे वीवी पालह/असाढ आम्ब पल्लवह तेन्नसिउ विलाधी ॥'
समुदाइ कज मूह करी सो भूसणइ काइ पदाणु हरइते उपमानु करहुं । ......."आपणी अछइ सकूडी वानणी
नाह करी करिउ सही अवहरहुं ।। बीबी=कुंदरू की बेल बानणी नर्तकी, मायाविनी १२२, अंक २
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