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________________ 23 " 33 १६ अणहर मांझे जो हारू सूतेरउ । सोहह्व रावउ सो एभुज ठेरउ || पारड़ी आंतरे थणहरू कइंसउ ।' २५. / सरय जलय विच चाडा जइसउ । सुतेर हारू रोमावलि कसिअउ । जाणि गांगह जलु जउणहि मिलिउ || पेह्नअ लवाही जे चंदहार | वीजर चांदहि ते आंगहि माडण अंगेर २६. कांठी / वेटी चंदराइ ॥ उजालु | वंडरो आलु ॥ काछा पेहरण के रिज सोह | आन सराहत सुणि गहि खोह || विउढणु सेंदुरी से लदही कीजइ । ' भउ देखि तारउ सव जणु खीजइ ॥ धवलर कापड़ उढिअल कइसे । * २७. मुह ससि / जोहं पसारेल जइसे ।। अइ सोउ वेसु जो गउडिहुं केरउ | छाडि एहु भव दिउ सवु तारउ || जेहर रूचइ तेहर तोरे वेसहि आधिक अइसी गउडिज राउले Jain Education International बोलू मोलू ॥ पइसइ । २८. सो जणु ला / छि मांडेउ दीपइ ॥ ० ॥ *॥*॥' ( विवेचना ) एक के पतुअउ ( भइ ) बोलs | १. पारड़ी = कांचली (महीन वस्त्र की ) -- परादिका २. चाडा= = छोटी मटकी गोड तु सबउ (बरऊ) इस जे पुणु मालवीउ वेसुहि आवतु काम्वदेउ जोउ आपणाह हथिआर हुं भूलइ ॥ ३. सेंदुरी सेलदही धारीदार महिन वस्त्र ४. बहू-बेटी को ऊपर से सफेद कपड़ा ओढ़ना होता है । ५. सोजणू लाछि मांडेउ = छोटे मंदिर में जैसे लक्ष्मी । = संभवत: ऐसी ही रमणी के लिए कवि - बब्बर की भी निम्न उक्ति हैखंजण-जुअल अण वर उपमा, चारूकणअ लई मुअ जुअ सुसमा । फुल्ल कमल मुहि गअ वर गमणी, कासु सुकिअ फल विहि गढ़ तरूणी || ६. हमारी समझ मे कवि ने पांच ही तरूणियों का परिचय दिया है । फिर उनके हाव भाव की विवेचना की है । For Private & Personal Use Only तुलसी प्रज्ञा www.jainelibrary.org
SR No.524588
Book TitleTulsi Prajna 1996 07
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages204
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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