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वसिष्ठ, विश्वामित्र और अष्टावक्र तक फैला हुआ है। अष्टावक्र आकर श्रीराम को उनके गुरुजनों का संदेश सुनाते हैं। महर्षि वाल्मीकि विपत्ति में पड़ी हुई सीता का पालन करते हैं। उनके बच्चों के लिए 'धात्रीकर्म' करते हैं, पालते हैं, शिक्षा-दीक्षा देकर उचित समय पर समुचित अधिकारी (श्री राम) के पास राजदरबार में पहुंचा देते हैं। इन उद्धरणों से स्पष्ट विदित होता है कि परिवार-स्थापना में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना होनी चाहिए। गार्हस्थ्य जीवन का सम्बन्ध जब तपस्विजनों से होता है तो पारिवारिक कार्यों का संचालन सुचारु रूप से होता है, परिवार की समृद्धि होती है और समाज में उसको प्रतिष्ठा मिलती है।
(ii) गृहस्थ का अग्निहोत्र होभवभूति को वैसा ही गृहस्थ परिवार पसन्द है जिसके यहां विधिवत् अग्निहोत्र होता है। यह बात सही है कि अग्निहोत्र कर्म गृहस्थे को बन्धन में डाल देता है परन्तु इसका अनुष्ठान बड़ा लाभकर है। इससे परिवार के सदस्यों में धार्मिक प्रवृत्ति का संचार होता है। राजा जनक एवं उनके परिवार की ख्याति का कारण अग्निहोत्र ही हैं।
(iii) नैतिकता को प्रश्रय देना -नैतिकता मनुष्य का महान् गुण है । नैतिक बल से ही कोई व्यक्ति संसार में अक्षय कीति स्थापित करता है। जो सदाचारी होते हैं वे ही परिवार के सदस्यों के समुचित भरण-पोषण के लिए दत्तचित्त रहते हैं । वे ईमानदारीपूर्वक सबको समान रूप से देखते हैं और समान प्रगति के लिए अवसर देते हैं। कामन्दकी एक संन्यासिनी है, विरक्त है, पारिवारिक बन्धन से मुक्त है, फिर भी पारिवारिक जीवन से दूर नहीं है। उसके लिए तो साथी, सहपाठी, पड़ोसी सबका परिवार अपना है । वह तो दूसरे के हित के लिए ही सोचती रहती है और यत्नशील रहती है । देवराज उसके सहपाठी एवं मित्र हैं। माधव देवराज का पुत्र है। मकरन्द माधव का मित्र है। कामन्दकी का माधव के प्रति पुत्र जैसा प्रेम है। वह हमेशा यही चाहती है कि देवराज और भूरिवसु की प्रतिज्ञायें पूरी हों, माधव सुरक्षित रहे, माधव का विवाह योग्य कन्या मालती से ही हो। जब कभी माधव या मकरन्द अस्वस्थ हो जाते हैं, तब वह वेचैन हो जाती है। उनके स्वस्थ हो जाने पर उसे असीम प्रसन्नता होती है। लगता है कि वही अस्वस्थ थी जो अब स्वास्थ्य लाभकर इतनी प्रसन्न हो रही हो। कामन्दकी की उदारता एवं सच्चरित्रता ही देवराज एवं भूरिवसू के परिवार को सुरक्षित रखने का साधन है। यदि कामन्द की उदार भाव से सहयोग नहीं करती तो मालती बूढ़े नन्दन के हाथ में दे दी जाती, फिर उसका जीवन गहित हो जाता। निश्चय ही परिवार के सदस्यों में नैतिकता होनी चाहिए।
समाज के जो-जो व्यक्ति हमारे उपकारक हैं हमारा पारिवारिक विस्तार वहां तक है। श्रीराम ने दुःख की अवस्था में अरुन्धती, वसिष्ठ, विश्वामित्र, धरित्री, जनक, अपने जनक, अपनी जननी, सुग्रीव, हनुमान, विभीषण और त्रिजटा का स्मरण किया है। श्रीराम स्वयं चरित्रवान् हैं। ये अपने सभी सहयोगियी का स्मरण करते हैं तथा स्वयं को इनसे उपकृत मानते हैं। इन सभी जनों को ये अपने परिवार के सदस्य के रूप में मानते हैं। श्री राम द्वारा याद किये गये सभी व्यक्ति चरित्रवान, सदाचारी एवं
तुलसी प्रज्ञा
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