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भवभूति की दृष्टि में परिवार का स्वरूप | मधुरिमा मिश्र
कवि क्रान्तदर्शी होता है । उसकी दृष्टि पैनी, प्रतिभा बहुमुखी एवं विचारधारा गम्भीर होती है । वह अपनी आंखों से जिन-जिन चीजों को देखता है, जिन परिस्थितियों से गुजरता है उसे अपने मानस में संग्रह करता है फिर अपनी प्रतिभा के बल पर उसे सुन्दर और आकर्षक बनाकर काव्य के रूप में प्रस्तुत करता है । भवभूति स्वयं पण्डित थे, आदर्शवादी थे और राजदरवार के सुख और सम्मान पा चुके थे, उनके अनुभव सचमुच उपादेय होंगे । यद्यपि उन्होंने एक समाजशास्त्री के रूप में परिवार और पारिवारिक जीवन के विषय में न कुछ सोचा है, न कहा है, फिर भी एक साहित्यकार होकर भी जो कुछ कहा है सचमुच वह बहु उपयोगी है। परिवार के सम्बन्ध में इनके विचार संकेत रूप में मिलते हैं । उन स्थलों की मीमांसा करने पर ही कवि की धारणाओं का पता चलता है । भवभूति के इन विचारों को निम्नलिखित क्रम में अभिव्यक्त किया जा सकता है।
स्थापित किये जाने से घरेलू
(i) परिवार की विस्तृत परिधि महाकवि भवभूति परिवार के विषय में परम्परागत विचार का अनुमोदन करते हैं । परिवार केवल एक व्यक्ति, उसकी पत्नी और उसकी संतान तक ही सीमित न हो अपितु उसकी परिधि दादा-दादी, चाचाचाची, भाई-भतीजे की सीमा से भी बाहर दूर-दूर तक हो । उसकी परिधि गृहस्थ के घर से संन्यासी के आश्रम तक विस्तृत हो । परिवार में रक्त सम्बन्ध से जुड़े हुए सभी सदस्य तो साथ रहें ही, विरक्त होकर आश्रम में निवास करनेवाले को भी सम्मिलित किया जाय । आश्रमवासियों के साथ पारिवारिक सम्बन्ध क्रिया-कलापों में सात्विकता का संचार होगा, तपस्या की पवित्रता से सदस्यों में नैतिकता का विकास होगा, व्यवस्था में सुदृढ़ता आएगी राजा जनक के परिवार में कुशध्वज का परिवार भी है । उस परिवार का सम्बन्ध महर्षि विश्वमित्र तक प्रसृत है । महर्षि जनक - परिवार के एक अभिन्न अंग हैं । दोनों एक-दूसरे के क्रिया-कलापों को जानते हैं, उनमें भाग लेते हैं विश्वामित्र भी जनक - परिवार की सुरक्षा एवं समृद्धि के लिए सतत यत्नशील हैं । ऋषि शतानन्द भी राजा जनक के परिवार के अंग हैं । परशुराम द्वारा क्रोध प्रदर्शित करने पर शतानन्द जोरदार रूप में प्रतिरोध करते हैं । शतानन्द इस परिवार में गृह सदस्य की तरह रहते आये हैं । ये अपने तपोबल से जनककुल की रक्षा करने के लिए तत्पर हैं । शतानन्द के ऐसे विचारों से महर्षि विश्वामित्र बड़े प्रसन्न हैं तथा उनकी राष्ट्र रक्षक ब्राह्मण के रूप में प्रशंसा करते हैं । श्रीराम का परिवार भी
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खंड २१, अंक १
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