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________________ था--उदाहरणतः तंडुल, भक्त, गुड़ोदन, कलमोदन, पायस आदि । हाथियों को भी तैल मिश्रित लड्डू खिलाया जाता था। घी, दही तथा दूध का भोजन के अंग के रूप में प्रयोग होता था। मोदक तथा अपूपक मिष्ठान्न थे। हींग, जीरा, भद्रमुस्त, वचा, सोठ तथा मिर्च के चूर्ण आदि मसालों का प्रयोग होता था। शाक, विभिन्न आचारों एवं लाल मूली या गाजर का चटनी का भी उपयोग होता था। मच्छली मांस सामान्यभोजन का बहुमूल्य अंश था। यह तामसिक भोजन उच्च घरानों में, शकार जैसे लोगों के यहां अधिक प्रयोग किया जाता था। आठवें अंक में शकार विट से कहता है हगूज्जले जीलकभद्दमुश्ते वचाह गण्ठी शगुडा डा शुष्ठी।" एशे मए शेविद गन्धजुत्ती कधं ण हग्गेमधुलश्शले त्ति ॥ मद्यपान की प्रथा प्रचलित थी। सीधु, सुरा तथा आसव तीन प्रकार के मादक पेय का उल्लेख आया है सीधुसुरासवमत्तिआ०...।" ५. परिधान उस काल में अनेक प्रकार के परिधान प्रचलित थे। स्त्री पुरुष दोनों प्रावारक (उत्तरीय) का प्रयोग करते थे। विवाहित नारियां अवगुंठन ओढ़ती थी। वसन्तसेना को ले जाने के लिए गाड़ी भी अवगुंठन युक्त थी । कर्णपूरक तथा शकार वस्त्र चमकीलेभड़कीले थे। उस समय लोग तौलिया (स्नान शाटी) का प्रयोग करते थे। मैत्रेय की तौलिया जीर्ण-शीर्ण थी जिसमें वसन्तसेना का आभूषण लपेटा हुआ था। चारुदत्त का प्रावारक चमेली पुष्प के सुगन्ध से वासित था। कर्णपूरक से वसन्तसेना कहती कण्णऊरअ, जाणीहि दाव कि एसो जादीकुसुमवासिदो पावारओ णवेत्ति ।" वसन्तसेना का जब शकार पीछा कर रहा था उस समय वह लाल रंग की रेशमी साड़ी पहने हुए थी। विट कहता हैकि यासि बालकदलीव विकम्पमाना __ रक्तांशुकं पवनलोलदशं वहन्ती। रक्तोत्पल करकुड्मलमुत्सृजन्ती टङ्कर्मन:शिलगुहेव विदार्यमाणा ॥१४ उसकी मां रेशमी वस्त्रों को धारण करती थी तथा उसका भाई भी पट्ट प्रावारक को धारण करता था। चारुदत्त ने कर्णपूरक को तथा शकार ने विट को, वसन्तसेना की हत्या के लिए सैकड़ों सूत्रों से निर्मित प्रावारक देने का प्रलोभन दिया था जदिच्छशे लम्बदशाविशालं पावालअ शुत्तशदेहिं जुत्तं । ५ मंशं च खादं तह तुट्टि कादं चुहू चुहू चुक्कु चुहू चुहूति ॥ भिक्षु लालवस्त्र (चीवर) धारणा करते थे। गाड़ियों को ढकने के लिए तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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