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________________ 'उपनगर में उनका हुए, और पूर्व की भाषा में ही उन्होंने धर्मोपदेश किया । वैशाली जन्म और घूमे मगध में। जैन परंपरा के अनुसार महावीर ने अपना उपदेश उनके पट्टशिष्यों को समझाया और वे पट्टशिष्य - गणधर उस उपदेश के संहननकार बनें । वह उपदेश मगध की प्रचलित भाषा में था । बुद्ध भी मगध में घूमे, किन्तु वह परदेसी थे । उनका जन्म था कोसल में और शिक्षा कोसल में पाई थी । महावीर मगध के उत्तर मगध के निवासी थे । यह भेद उनकी भाषा के भेद समझने के लिए स्पष्ट करना आवश्यक है । गणधरों से संगृहीत महावीर वाणी हमको तीन वाचना के बाद ही मिलती है । जैसे बौद्ध परम्परा में तीन वाचनायें हैं, वैसे जैन परम्परा में भो तीन वाचनायें हैं। मुझे तो यह एक अत्यंत विलक्षण अकस्मात् मालूम होता है। दोनों की ऐतिहासिकता भी विवादास्पद है । प्रथम वाचना महावीर निर्वाण के १६० साल के बाद पाटलीपुत्र में होती है । परंपरानुसार वीर निर्वाण के १५० साल के बाद मगध-पाटलीपुत्र में भयानक अकाल पड़ा और भद्रबाहु प्रभृति जैन श्रमणों को वहां से दूर चले जाना पड़ा, आत्मरक्षा के लिए। कुछ श्रमण वहां रहे भी । अकाल के बाद मालूम हुआ, ऐसे आघातों से स्मृतिसंचित उपदेश नष्टप्राय होते जायेंगे, उनको व्यवस्थित करना आवश्यक है। तदनुसार पाटलीपुत्र में जैन श्रमण संघ की परिषद् मिली और आगम साहित्य की व्यवस्था की गई। यह हुआ करीब ई०पू० की चौथी सदी में । इस परिषद के बाद करीब आठ सौ साल तक आगम साहित्य की कोई मरम्मत नहीं होती। दूसरी परिषद मिली मथुरा में, ई० की चौथी सदी में । उसके दो सौ साल के बाद तीसरी परिषद मिलती है । देवगण उसके प्रमुख थे । ई० की छुट्टी शताब्दी की अनेक प्रतियों को मिलाकर आधारभूत पाठ निर्णय करने भिन्न प्रतियों को मिलाकर जब नई प्रति लिखी जाती है, के बजाय अत्यन्त मिश्रित पाठपरंपरा खड़ी होती है । नीलकंठ लिखते हैं- इस आखिरी परिषद के समय का प्रयत्न होता है । भिन्नतब साधारणतया, शुद्ध पाठ जैसे महाभारत के टीकाकार बहून्समाहृत्य विभिन्न देश्यान् कोशान्विनिश्चित्य च पाठमग्यूम् । प्राचां गुरूणामनुसृत्य वाचमारभ्यते भारतभावदीपः ॥ इससे नीलकंठ के पाठ को स्वीकारने में महाभारत के संपादक को खूब सावधानी रखनी पड़ती है । परंपरानुसार, आगम साहित्य में महावीर का उपदेश संचित है और उस साहित्य की भाषा को अर्धमागधी कहते हैं । खुद आगम साहित्य में इस नाम का उल्लेख आता है । जिस काल में इस भाषा में उपदेश दिया गया और जिस काल में उसकी साहित्यिक संघटना हुई इन दोनों के बीच करीब एक हजार साल का अंतर है और यह हकीकत ही भाषाशास्त्री को निराश करने के लिए काफी है । यह सत्य है कि स्मृतिसंचित उपदेश - साहित्य काल के बदलने पर भाषा भी बदलते हैं । बौद्ध साहित्य की वाचनाएं बुद्ध के निर्वाण के बाद पांच सौ साल में पूरी होती है, आगम साहित्य की वाचनाएं महावीर के निर्वाण के बाद एक हजार साल के बाद पूरी होती हैं । इस दृष्टि से संभव खण्ड २२, अंक १ ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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