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पद (पंक्ति) की मात्राओं का जानना अति आवश्यक है। पद संख्या मंत्र के शब्द
मात्राएं प्रथम णमो अरहंताणं
७ (सात) द्वितीय णमो सिद्धाणं
५ (पांच) तृतीय णमो आयरियाणं
७ (सात) चतुर्थ णमो उवज्झायाणं
७ (सात) पंचम णमो लोएसव्वसाहूणं
९ (नौ)
योग-३५ उपर्युक्त मंत्र की सस्वर साधना करते समय ॐ (ओम्) शब्द का उच्चारण करते हैं। इससे मंत्र ३६ मात्राओं का छन्द बन जाता है । वैदिक छंदों में ३६ मात्राओं का बहती छन्द है । सांगीतिक दृष्टि से ३६ की संख्या का बहुत महत्व है।
प्राचीन तथा आधुनिक संगीत विद्वानों ने सप्त-स्वर स्थापित करने के लिए ३६ की संख्या को आधार माना है । भारतीय संगीतकला के विद्वान पं० श्री निवास ने 'वीणा-वाद्य' पर ३६" इन्च का तार लगाकर स्वर-स्थापना की । राग-रागनियों की संख्या छह-राग और तीस रागानियां कुल ३६ आज भी लोगों के मुख से सुनने को मिलती हैं।
__'महासंत्र' के प्रथम, तृतीय एवं चतुर्थ पद जो ॐ की ध्वनि साहित आठ-आठ मात्राओं के हैं, जिनका योग २४ (चौबीस) है; जो नये स्वर का बोध कराता है। 'वीणा' में २४" इन्च की दूरी पर श्री निवास का पंचम स्वर है। वैदिक छन्दों में २४ मात्राओं का गायत्री छन्द है, जो गायत्री-मंत्र के नाम से जाना जाता है।
'महामंत्र' के ॐ रहित पदों पर विचार करते हैं तो उनसे संगीत तत्वों के दर्शन होते हैं। जैसे --संगीत कला में सप्त-स्वर, तीन ग्राम हैं। महामंत्र के प्रथम, तृतीय और चतुर्थ पद की सात-सात मात्राएं सप्त-स्वर, तीन ग्राम की जानकारी कराती है। ये तीन ग्राम संगीत कला में तीन स्वर स्थान (सप्तक) हैं, जो मानव के कायपिण्ड में स्थित हैं। प्रथम नाभि से हृदय तक, द्वितीय स्थान हृदय से कंठ तक और तृतीय स्थान कंठ से मस्तिष्क तक है। महामंत्र में इन तीनों स्थानों का ज्ञान कराने वाली तीन महान् शक्तियां मंत्र के तीनों पदों में विराजमान हैं। मंत्र की साधना करने वाले श्रावक उन्हें नमन करते हैं। उनके नाम हैं-अरहंत, आचार्य और उपाध्याय । ये तीनों महान् शक्तियां साधक को तीनों लोकों में विचरन करने अर्थात् संबंध स्थापित करने की प्रेरणा देती हैं, जहां ३६ राग-रागनियों का साम्राज्य तथा आनन्द ही आनन्द है।
'महामंत्र' के पदों की संख्याओं के माध्यम से सप्त-स्वर, तीन-ग्राम, ३६ रागरागनियों के अतिरिक्त षड़ज (सा) और पंचम (प) स्वर की जानकारी ३६ और २४ संख्याओं के माध्यम से मिली। शेष स्वरों की जानकारी के लिए षड़ज और पंचमस्वर संवादानुसार गणित का सहयोग प्राप्त करना होगा।
___'वीणा' के तार की लम्बाई द्वारा ३६" इन्च पर षड़ज और २४" इन्च पर पंचम स्वर है। यही संख्या महामंत्र के पांचों तथा तीनों पदों की है। मंत्र के प्रथम
तुलसी प्रज्ञा
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