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________________ शब्द (ध्वनि) ॐ से लेकर अन्तिम शब्द (ध्वनि) 'ण' ‘णमोकार महामंत्र' नामक वीणा का ३६" इन्च का तार है, जिसके तृतीय पद का अन्तिम ‘णं' (ध्वनि) है, जो २४ मात्राओं का बोध कराती है, वहां षड़ज (सा) स्वर, स्थित है। उसयुक्त दोनों स्वरों की संख्याएं संवादात्मक है । संवाद का अर्थ है, दो विभिन्न प्रकार की ध्वनियों को एक साथ किसी वाद्य द्वारा प्रकट करने पर कानों को अप्रिय नहीं लगे । षड़ज और पंचम के तारों को एक साथ बजाया जावे तो दोनों की आत्माएं एकाकर होकर स्वर-सौदर्य को उभारते हुए श्रोताओं को आनन्दित करेंगी। स्वर-संवाद दो प्रकार के हैं, एक पंचम भाव और दूसरा मध्यम-भाव स्वर संवाद । सर्व प्रथम पंचम भाव स्वर-संवाद पर विचार करें, क्योंकि मध्यम नामक स्वर की जानकारी अभी तक हमारे सामने नहीं आई है। षड़ज-पंचम भाव में ३६ और २४ संख्याओं को सही बट्टा करने पर जो उत्तर आयेगा वही संख्या सा से प स्वर की दूरी होगी। जैसे-३६-३ अर्थात् सा से प स्वर १, (डेढ गुना) दूरी पर है । कितु तार सप्तक का सा स्वर जो वीणा' में १८” इन्च पर स्थित है, उसकी दूरी ३ नहीं है । उक्त स्वर की दूरी ज्ञात करने के लिए २४ और १८ संख्याओं के माध्यम से जानकारी करनी होगी। जैसे अर्थात १३ की दूरी पर सप्तक का षड़ज स्थित है। यह दूरी 'षड़ज-मध्यम-भाव' का बोध कराती है इस प्रकार हमें षड़ज, पंचम और मध्यम स्वरों की जानकारी प्राप्त होती है। प्रश्न यह है कि १८ की संख्या ‘णमोकार महामंत्र' में कहां है ? इस रहस्य को जानने के लिये महामंत्र को पंच-तन्त्री वीणा के रूप में स्वीकार करना होगा। उक्त वीणा के प्रथम और अन्तिम पदों की संख्या ८+१०=१८ हैं। यही १८ की संख्या 'षड़ज-मध्यम-भाव' को प्रकट करती है। विभिन्न मतानुसार सप्त-स्वर-स्थापना स्वर नाम षड़ज ऋषभ गंधार मध्यम पंचम धैवत निषाद श्रुत्यान्तर ४ ३ २ ४ ४ ३ २ तार की लंबाई ३६" ३२" ३०" २७" २४” २१३ २० कम्पन संख्या २४० २७० ३०० ३२० ३६० ४०५ ४५० कम्पन संख्या के आधार पर अन्य स्वरों का एवं उनकी कम्पन संख्या का बोध 'षड़ज-पंचम-भावानुसार निम्न प्रकर से होगा--. ऋषभ स्वर :-पंचम स्वर की कम्पन संख्या ३६० है । ३ से गुणा करने पर जो ___ संख्या आयेगी वह ऋषभ स्वर की होगी। ३६०४३ = ५४० यह कम्पन संख्या तार सप्तक के ऋषभ स्वर की है। मध्यसप्तक की कम्पन्न सख्या इसकी आधी अर्थात् २७० है। धैवत-स्वर :- ऋषभ स्वर की कम्पन संख्या २७० को ३ से गुणा करने पर धैवत स्वर की कम्पन संख्या का बोध होगा। खंड २२, बंक १ २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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