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एक्क→इक्क+एक एत्तो-→इत्तो+इतः
आगम सूत्रों की मूलभाषा अर्धमागधी रही है। देवद्धिगणी ने आगमों का नया संस्करण वल्लभी में किया था। महाराष्ट्र में जैन श्रमणों का विहार होने लगा। उस स्थिति में आगमसूत्रों की अर्धमागधी भाषा महाराष्ट्री से प्रभावित हो गई। आचार्य हेमचन्द्र का विहार-स्थल भी मुख्यतः गुजरात था । वह महाराष्ट्र का समीपवर्ती प्रदेश है । उन्होंने महाराष्ट्री के प्रचलित प्रयोगों को अपने प्राकृत व्याकरण में प्रमुख स्थान दिया। अर्धमागधी के उन प्राचीन रूपों, जो उस समय तक आगमों में सुरक्षित थे, को आर्ष प्रयोग के रूप में उल्लिखित किया। मूलतः प्राचीन आगम-सूत्रों (आयारो, सूयगड, उत्तरज्झयणाणि आदि) की भाषा महाराष्ट्रीय नहीं थी, किन्तु उत्तरकालीन आगमों तथा उनके व्याख्याग्रंथों की भाषा महाराष्ट्री हो गई। सभी जैन आगमों की भाषा न अर्धमागधी है और न महाराष्ट्री और आर्ष प्राकृत का अध्ययन करते समय यह तथ्य विस्मृत नहीं होना चाहिए । संदर्भ १. हेमशब्दानुशासन, ८।११३ : आर्षे हि सर्वे विधयो विकल्प्यन्ते । २. हेमशब्दानुशासन, ८।११७९ : आष अन्यत्रापि । पच्छेकम्मं । असहेज्ज देवासुरी । ३. हेमशब्दानुशाशन, ८।१।१७७ : आर्षे अन्यदपि दृश्यते । आकुञ्चनं आउण्टणं । अत्र
चस्य टत्वम् । ४. हेमशब्दानुशासन, ८।१।२४५ : आर्षे लोपोपि । यथाख्यातम्-अहक्खायं । यथाजा
तम् ---अहाजायं ॥ ५. हेमशब्दानुशासन, ८।११२५४ : आर्षे दुवालसंगे इत्याद्यपि । ६. हेमशब्दानुशासन, ८।२।१७ : आर्षे इक्खू, खीरं, सारिक्खमित्यापि दृश्यन्ते । ७. हेमशब्दानुशासन, ८।२।३ : क्ष, खः क्वचित्तु छझो। ८. हेमशब्दानुशासन, ८।२।२१ : आर्षे तथ्ये चोपि-- तच्च । ९. हेमशब्दानुशासन, ८।२।९६ : आर्षे श्मशानशब्दस्य सीआणं सुसाणमित्यपि भवति । १०. हेमशब्दानुशासन, ८।२।९८ : आर्षे पडिसोओ निस्सोअसिआ । ११. हेमशब्दानुशासन, ८।२।१०१ : आर्षे सूक्ष्मेऽपि, सुहमं । १२. हेमशब्दानुशासन, ८।२।११३ : आर्षे सूक्ष्मम्, सुहमं । १३. हेमशब्दानुशासन, ८।२।१०४ : किरिआ, आर्षे तु हयं नाणं कियाहीणं । १४. हेमशब्दानुशासन, ८।२।१२० : आर्षे हरए महपुण्डरिए । १५. हेमशब्दानुशासन, ८।२।१४६ : कट्ट इति तु आर्षे । १६. हेमशब्दानुशासन, ८।२।१७४ : आर्षे तु यथादर्शनं सर्वमविरुद्धम् । १७. (क) हेमशब्दानुशासन, ८।३।१३७ : आर्षे तृतीयापि दृश्यते । "प्रथमाया अपि
द्वितीया दृश्यते । (ख) हेमशब्दानुशासन, ८।३।१६२ : आर्षे देविन्दो इणमब्बवी इत्यादी सिद्धावस्था
श्रयणात् हास्तन्या: प्रयोगः ।
खन्न २२, मंक १
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