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________________ विधान, धातु, स्वर, विभक्ति और वर्ण का बोध होना चाहिए । सत्यवचन इनके बोध से युक्त होता है। इस प्रतिपादन से ज्ञात होता है कि व्याकरण-बोध की अनिवार्यता प्राचीनकाल से मानी गई है। दशवकालिक के आचार, प्रज्ञप्ति और दृष्टिवाद इन तीनों शब्दों का अर्थ चूर्णि और टीकाकार तक व्याकरण से संबंधित था। अगस्त्यसिंह स्थविर ने आचारधर और प्रज्ञप्तिधर का अर्थ भाषा के विनयोंनियमों को धारण करने वाला किया है ।" जिनदास महत्तर के अनुसार 'आचारधर' शब्दों के लिंग को जानता है ।५२ टीकाकार ने भी यही अर्थ किया है। प्रज्ञप्तिधर का अर्थ लिंग का विशेष जानकार और दृष्टिवाद के अध्येता का अर्थ प्रकृति, प्रत्यय, लोप, आगम, वर्णाधिकार, काल, कारक आदि व्याकरण के अंगों को जानने वाला किया है।" ___ उक्त उद्धरण आर्षप्राकृत के प्राचीन व्याकरण की ओर इंगित करते हैं । आर्षप्राकृत के वर्णादेश और शब्द भी आधुनिक प्राकृत व्याकरण से भिन्न है। आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार दकार को तकार आदेश होता है-मदन=मतन, सदन-सतन, प्रदेश-प्रतेश । किन्तु आर्षप्राकृत में अनेक स्वरों तथा व्यंजनों के स्थान में तकार आदेश मिलता है ... एरावण --- तेरावण (सूत्र कृतांग ११६।२१) मुसावायं. नुसावातं (सूत्र कृतांग ११९।१०) साहुकं ---- साहुतं (सूत्र कृतांग ॥१॥३३) विसएसणं-विसतेसणं (सूत्र कृतांग १।११।२८) ओरभिए--तोरभिए (सूत्र कृतांग २।२।१९) काय .. कात (सूत्र कृतांग २।२।४) समए- समते (सूत्र कृतांग २।२।१६) रुईणं-रुतीणं (सूत्र कृतांग २।२।१८) द्वित्वादेश आर्ष-प्रयोगों में कुछ द्वित्वादेश ऐसे हैं, जो प्राकृत व्याकरणों से सिद्ध नहीं होते---सच्चित्त सचित्त, अच्चित्त-अचित्त, सगडब्भि-स्वकृतभिद्, तहक्कार=तथाकार,कायग्गिरा=कायगिरा, पुरिसक्कार-पुरुषकार, अणुब्वस=अनुवश,अल्लीण= आलीन । ह्रस्वादेश प्राकृत व्याकरण के अनुसार संयुक्त वर्ण से पूर्व दीर्घ वर्ण ह्रस्व हो जाता है। किन्तु आर्ष प्राकृत में यह नियम लागू नहीं होता । प्राचीन आदर्शों में कुछ रूप आज भी सुरक्षित हैं, जिनमें संयुक्त वर्ण से पूर्व उपलब्ध है ओग्गह उग्गह-अवग्रह पोग्गल पुग्गल-पुद्गल तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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