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________________ का संस्कृत रूप 'अप्' होता है । संस्कृत में यह स्त्रीलिंग वाची शब्द है और प्राकृत में पुल्लिगवाची । प्राकृत का प्रसिद्ध सूत्र है--लिंगमतन्त्रम् ।' प्रज्ञापना में सोलह प्रकार के वचनों में एकवचन द्विवचन और बहुवचन-इन तीनों का निर्देश है ।" यह निर्देश संस्कृत-व्याकरणानुसारी प्रतीत होता है। प्राकृत व्याकरण के संदर्भ में एक वचन और बहुवचन--ये दो ही निर्देश मिलते हैं—मणुस्से, महिसे --यह एकवचन है। मणुस्सा महिसा--- यह बहुवचन है। इस प्रसंग में द्विवचन का उल्लेख नहीं है । द्विवचन को बहुवचन का आदेश' इसलिए करना पड़ा कि उन्होंने संस्कृत को प्राकृत की प्रकृति मान लिया। किन्तु जो आचार्य जनभाषा को प्राकृत की प्रकृति मानते हैं, उनके सामने द्विवचन को बहुवचन का आदेश करने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता । वर्णमाला प्राकृत भाषा के साथ ब्राह्मी लिपि का घनिष्ठ संबंध रहा है। समवाय सूत्र में उसकी वर्णमाला के ४६ अक्षर बतलाए गए हैं। उनका स्पष्टीकरण वहां प्राप्त नहीं है । वृत्तिकार अभयदेवसूरि ने संभावित रूप से छियालीस मातृकाक्षरों को जानकारी इस प्रकार दी है"--- ऋ ऋ ल ल-इनका वर्जन कर शेष १२ स्वर । क से म तक व्यंजन (५४५)=२५ अन्तस्थ-य र ल व -४ ऊष्म-श ष स ह ० आचार्य हेमचन्द्र के अनुसार प्राकृत वर्णमाला के अक्षर ३८ होते हैं । उनके अनुसार प्राकृत में ऋ, ऋ, ल, ल, ऐ, ओ, अ:-ये स्वर तथा ङ, , श, ष,--व्यंजन नहीं होते।" स्ववर्य संयुक्त ङ और न को मान्य किया है। ऐ और ओ को भी मतान्तर के रूप में मान्य किया है ।" मागधी में दन्त्य सकार के स्थान पर तालव्य शकार होता है। इस प्रकार पांच वर्षों के बढ़ जाने पर वर्णमाला के अक्षर ४३ हो जाते हैं । तीन वर्गों के प्रयोग आधुनिक प्राकृतों में नहीं मिलते। पालि व्याकरण में ४१ अक्षर निर्दिष्ट हैं ----अ आ इ ई उ ऊ ए ओ । क ख ग घ ड़ । च छ ज झ ञ । ट ठ ड ढ ण त थ द ध न । प फ ब भ म । य र ल व । स ष ह ल । आचार्य हेमचन्द्र ने प्राकृत व्याकरण में ङ और इन दोनों वर्णों को वर्जित माना है, किन्तु पालि व्याकरण में ये दोनों मान्य हैं । सत्यवचन के साथ व्याकरण का संबंध माना गया है। सत्यभाषी को नाम, आख्यात, निपात, उपसर्ग, तद्धित, समास, सन्धि, पद, हेतु, यौगिक, उणादि, क्रिया बर,२२, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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