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पंचम संक्रमण
• मन्ने (दस० ६।१८) ___ यहां बहुवचन के स्थान पर एक वचन है। ० से दसंगेऽभिजायई (उत्त० ३.१९)
यहां बहुवचन के स्थान पर एकवचन है। • उच्चार समिईसु (उत्त० १२।२) __ यहां एकवचन के स्थान पर बहुवचन है ।२९ ।
१०. भिन्न अनुयोग-जैसे-'तिविह तिविहेणं' यह संग्रह-वाक्य है। इसमें (१) मणेणं वायाए कायेणं तथा (२) न करेमि, न कारवेमि, करंतंपि अन्नं न समणुजाणामि-इन दो खंडो का संग्रह किया गया है। द्वितीय खंड- न करेमि आदि तीन वाक्यों में 'तिविहं' का स्पष्टीकरण है और प्रथम खंड ---..'मणेण' आदि तीन वाक्यांशों में 'तिविहेणं' का स्पष्टीकरण है। यहां 'न करेमि' आदि बाद में हैं और 'मणेणं' आदि पहले । यह क्रम भेद है । कालभेद..... 'सक्के देविदे देवराया वंदति नमसति'- यहां अतीत के अर्थ में वर्तमान की क्रिया का प्रयोग है।
अनुयोगद्वार में आठ विभक्तियां बतलाई गई हैं। उनमें आठवीं का नाम आमंत्रणी है। वृत्तिकार ने इस पर टिप्पणी करते हुए लिखा है - इस आठवीं विभक्ति का आधार प्राचीन वैयाकरण है। आधुनिक वैयाकरण इसे प्रथमा विभक्ति ही मानते हैं । अनुयोगद्वार के चूणिकार ने इसी के लिए शब्दप्राभृत और पूर्व के अन्तर्गत व्याकरण का निर्देश किया है।
आर्ष-प्राकृत का वैदिक व्याकरण से साम्य पाया जाता है ।२ प्रमाणित होता है कि उसके नियम प्राचीन व्याकरणों से संबद्ध है
अनुयोगद्वार में लिंगानुशासन के नियम भी मिलते हैंपुंलिग-राया, गिरि, सिहरी, विण्हू, दुमो। स्त्रीलिंग- माला, सिरी, लच्छी, जंबू, बहू । नपुंसकलिंग--धन्नं, अत्थिं, पील, महुं : प्रज्ञापना में लिंग-विषयक निर्देश अनुयोगद्वार से अधिक विशद मिलते हैं
पुंलिंग-मणुस्से, महिसे, आसे, हत्थी, सीहे, बाघे, वगे, दीविए, अच्छे, तरच्छे, परस्सरे, सियाले, विराले, सुणए, कोलमुणए, कोक्कतिए, ससए, चित्तए, चिल्ललए।"
स्त्रीलिंग-मणुस्सी, महिसी, बलवा, हस्थिणिया, सीही, वग्घी, वगी दीविया, अच्छी, तरच्छी, परस्सरा, सियाली, विराली, सुणिया, कोलसुणिया, कोक्कतिया, ससिया, चितिया, चिल्ललिया । ५
नपुंसकलिंग-कम, कसोयं, परिमंडलं, सेलं, थमं, जालं, थालं, तारं, रूवं, अच्छिं, पव्वं, कुंड, पउमं, दुद्धं, दहि, णवणीयं, आसणं, हयणं, भवणं, विमाणं, छत्तं, चामर, भिंगारं, अंगणं, निरंगणं आभरणं, रयणं ।
'पुढवी' यह स्त्रीलिंग है । 'आउ' यह पुल्लिग है । 'धणं' यह नपुंसकलिंग है।" प्राकृत में लिंग का विधान इतना नियंत्रित नहीं है जितना संस्कृत में हैं । 'आउ'
तुमसी प्रज्ञा
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