________________
३. पिकार अनुयोग-'अपि' शब्द के अनेक अर्थ हैं, जैसे-संभावना, निवृत्ति, अपेक्षा, समुच्चय, गर्दा, शिष्यामर्षण, विचार, अलंकार तथा प्रश्न । ‘एवंपि एगे आसासे —यहां अपि का प्रयोग ‘ऐसे भी' और 'अन्यथा भी'--इन दो प्रकारान्तो का समुच्चय करता है ।
४. सेयंकार अनुयोग-'से' शब्द के अनेक अर्थ है -अथ, वह, उसका आदि । से भिक्खू'---यहां 'से' का अर्थ 'अथ' है । 'न से चाइत्ति वुच्चइ' --- यहां से का अर्थ वह (वे) है । अथवा 'सेय' शब्द के अनेक अर्थ हैं-श्रेयस्, भविष्यत्काल आदि। सेयं में अहिज्जिउं अज्झयणं-यहां 'सेय' शब्द श्रेयस् के अर्थ में प्रयुक्त है। 'सेयकाले अकम्म यावि भवइ'- यहां 'सेय' भविष्यत् काल का द्योतक है । डॉ० पिशल ने 'सकार' की विशद मीमांसा की है । देखें-प्राकृत भाषाओं का व्याकरण पृ० ६२२-२५)।
५. सायंकार अनुयोग -- सायं शब्द के अनेक अर्थ हैं- सत्य, सद्भाव, प्रश्न आदि।
६. एकत्व अनुयोग-बहुवचन के स्थान पर एक वचन का प्रयोग । 'एस मग्गुत्ति पन्नत्तो' (उत्त० २८।२)---यहां 'मग्ग' शब्द एकवचन का प्रयोग है, जबकि यहां बहुवचन होना चाहिए था।
७. पृथक्त्व अनुयोग - जैसे ---धम्मत्थिकाये, धम्मत्थिकायदेसे, धम्मत्थिकायपदेसा यहां 'धम्मत्थिकायपदेसा'-इनमें दो के लिए बहुवचन नहीं है किन्तु धर्मास्तिकाय के प्रदेशों का असंख्यत्व बतलाने के लिए है।
८. संयूथ अनुयोग --'सम्मत्तदंसणसुद्ध'-इस समस्त पद का विग्रह अनेक । प्रकार से किया जा सकता है; जैसे
(क) सम्यगदर्शन के द्वारा शुद्ध (तृतीया) (ख) सम्यग्दर्शन के लिए शुद्ध (चतुर्थी) (ग) , के लिए शुद्ध (पंचमी)
९. संक्रामित अनुयोग-इसके अनुसार विभक्ति और वचन का संक्रमण होता है। विभक्ति संक्रमण
० इच्चेसि छण्हं जीवनिकायाणं (दस० ४१२)
यहां सप्तमी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति है । ० बीएसु हरिएसु (दस० ५।११५७)
यहां तृतीया के अर्थ में सप्तमी विभक्ति है। ० भोगेसु (दस० ८।३४)
यहां पंचमी के अर्थ में सप्तमी विभक्ति है । ० अदीणमणसो (उत्त० २।३)
यहां प्रथमा के अर्थ में षष्ठी विभक्ति है । ० कडाणं कम्माणं (उत्त० १३।१०)
यहां पंचमी के अर्थ में षष्ठी विभक्ति है।
बंर २२ अंक ४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org