________________
१ ब्रह्म मास = १५ ब्रह्म दिन + १५ ब्रह्म रात्र = १५ ब्रह्म मुहूर्त + १५ ब्रह्म मुहूर्त । अर्थात् १५ कल्प + १५ कल्प = ३० कल्प, इन ३० कल्पों के नाम भागवत पुराण (२-१० ) पर लिखे हैं । वर्तमान में ब्रह्म के मास का श्वेत बारह कल्प प्रथम दिन है ।
सूर्य सिद्धान्त (१-१९) में केवल १४ मनु ही दिए हैं । १५वां मनु ६ चतुर्युग का का रह जाता है । तभी १ कल्प होता है । १५वां मनु है । चाहे छोटा हो या बड़ा । १५ मनु को १५ वां मनु कह कर नहीं भुला सकते, उसकी संख्या ६ चतुर्युग - ६x४६, २००००=१५×१७२८००० = १५४ कृत युग कर १५ संधियां कर सब गड़बड़ कर दी है । यदि १५ मनु समान मानते तो उनकी संख्या एक कल्प से अधिक हो जाती है । अतः १४ मनु समान माने और १५ वां मनु छोटा लेने से कल्प की संख्या स्थिर रहती.
है ।
वैदिक ज्योतिष में दिन रात सूर्य से मास चांद से पुनः वर्ष सूर्य से मानते हैं । सौर अहोरात्र में ३० मुहूर्त, चन्द्र मास ३० दिन का, वर्ष १२ मास का तो वर्ष ३६० अहोरात्र का होता है, चन्द्र मास कभी भी २९१ अहोरात्र से अधिक नहीं होता है, परंतु सिद्धान्त में ३० अहोरात्र की संख्या से गणना करते हैं, प्रत्येक माह कोई ना कोई तिथि क्षय होती है और प्रत्येक मास लगभग एक तिथि की कमी हो जाती है, परन्तु गणना में ३० अहोरात्र से ही गिनते हैं । इस प्रकार प्रत्येक मास धन अशुद्धि (+६४४०४) हो जाती है इसकी पूर्ति प्रति २३ वर्ष में एक अधिमास लगा कर क्षति पूर्त कर लेते हैं । फिर भी कुछ धन अशुद्धि शेष रह जाती है, कोई गणितज्ञ व ज्योतिषी इस धन अशुद्धि की कल्प की गणना करने असमर्थ है, न आयु है न सामर्थ्य । एक कल्प की अवधि स्थिर रखने हेतु वैदिक ज्योतिष ने १४ छोटा कर यह धन अशुद्धि हटाकर १५ मनु की संख्या ६ संख्या स्थिर रख ली है । ये वैदिक ज्योतिष गणना की त्योहार आदि ऋतुओं के अनुसार आते हैं । यही १५ मनुओं का समाधान है ।
समाधान का औचित्य
रविवार के समाप्त क्षण सोमवार का प्रारंभ, यहां क्या कोई संधि काल है । संध्या व उषा क्या रात के अंग नहीं हैं ? क्या इनकी गणना २४ घंटों में शामिल नहीं हैं ? क्या ये ३० मुहुर्ती में शामिल नहीं हैं ? क्या इनकी गणना २४ घंटों या ३० मुहूर्ती से बाहर हैं ! चैत्र शुक्ल एकम व चैत्र द्वितीया में कोई संधि काल है ? जहां तीन बजे कि उसीक्षण क्या चार प्रारंभ नहीं होता है ? संवत् २०५३ जिस क्षण समाप्त उसी क्षण २०५४ प्रारंभ |
कहीं पर भी कोई संधि नहीं आती है । फिर मनुओं में ही संधियों की कल्पना क्या कोरी कल्पना नहीं है ? किसी समय, अवयव में संधियां नहीं आती हैं, फिर मनुओं में कैसे संभव है ? संधियों की कल्पना अवैदिक तथा अवैज्ञानिक है, अतः सृष्टि संवत् तो एक ही १९६०८५३०९६ वर्ष ही है । १५ वें मनु की छोटी संख्या को समझने हेतु
३६
तुलसी प्रशा
Jain Education International
समान मनु तथा १५वां मनु चतुर्युग रख कर कल्प की विशेषता है तभी हमारे तीज
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org