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________________ गणना इस प्रकार है एक ब्रह्म अहोरात्र-सृष्टिकाल+प्रलयकाल=२ कल्प एक ब्राह्म वर्ष=३६० ब्राह्म अहोरात्र-३६०४२ कल्प ब्रह्मा की परम आयु-१००४३६०४२ कल्प ब्रह्मा की आधी आयु=३६००० कल्प सूर्य सिद्धान्त का यह सूत्र कहता है कि गत कल्प में ब्रह्मा की आधी आयु (३६००० ?) बीत गई है। वह वर्तमान कल्प, श्वेत वाराह, द्वितीयार्द्ध का प्रथम दिन है। डा० परमेश्वर सोलंकी ने इसे २९वां कल्प लिखा है। इससे पहले २८ कल्प बीत चुके हैं। इन २८ कल्पों के नाम वायुपुराण में दिए हैं । गत बृहत् कल्प अन्तिम २८वां कल्प था । भविष्य पुराण (३.३.४) के अनुसार २८वें बृहत् कल्प के अन्त में कुरूक्षेत्र संग्राम हुआ । ब्रह्मा की परम आयु ३६०००४२ कल्प को ही बृहदारण्यक उपनिषद् की कथा माला में मोक्ष की अवधि अथवा मुक्ति की अवधि लिखा गया है। इसका अर्थ यह हुआ कि ब्रह्मा की परम आयु, तथा मोक्ष की अवधि एक समान है। वर्तमान श्वेत वाराह कल्प से पहले २८ कल्प बीत चुके हैं । इसका अर्थ भी यही प्रतीत होता है कि ब्रह्मा की आधी आयु बीत चुकी है। अधिकारी विद्वान इस पर प्रकाश डाले तो उचित होगा। प्रहरार्द्ध तथा 'पराद्धे' दोनों पदों का प्रयोग उपरोक्त संकल्पों में हुआ है । सूर्य सिद्धान्त मयदानव कृत है । जो वर्तमान चर्तुयुग के कृत युग के अन्तिम चरण में लिखा है जैसा कि सूर्य सिद्धान्त (१-२) में लिखा है। उस समय ब्रह्मा की आधी आयु बीत चुकी थी। संकल्प सूत्र संख्या (१) के प्रहराद्धे के स्थान पर परार्द्ध संकल्प सूत्र संख्या (२) में आता है । इसका अर्थ यह है कि संकल्प सूत्र संख्या (१) के वाद संकल्प सूत्र संख्या सं. (२) बना है, क्योंकि ब्रह्मा की आधी आयु तथा सृष्टि संवत् का संबंध है । संकल्प सूत्र स. (१) पर आया पद उचित है जो कहता है कि सृष्टि का दूसरा पहर चल रहा है, दोपहर (NOON) होने वाली है। ____ मनु १५ होते हैं किन्तु मयदानव ने १५ को १४ कर दिया और १५ वे की छोटी अवधि ६ चर्तयुग को १५ सन्धियों में बदल कर मनुओं के आगे पीछे तथा बीच में लगा कर मान्यता दिलाने का प्रयास किया। जैसा कि सूर्य सिद्धान्त (१-२) में लिखा है। इस मष्टि संवत की गणना सूर्य सिद्धान्त (१-४५-४६-४७) में दी गई है । जहां इस गणना सात संधियों के= १२०९६००० वर्ष और जोड़ कर सृष्टि संवत् की १९७,२९, ४९०९६ वर्ष दी गई है। संधियों की कल्पना ही दोनों संख्याओं के अन्तर का कारण है। संधियों की कल्पना का आधार सूर्य सिद्धान्त के (१-१७) व (१-१९) सूत्र हैं।" इन दोनों सूत्रों के मेल से एक नया संकल्प सूत्र भी बना है "ओं तत्सदद्य ब्रह्मणो द्वितीय पराः प्रथम दिवसे द्वितीय प्रहराद्धे श्री वैवस्वत मन्वन्तरे अष्ठाविंशतितमे ........।" उल्लेखनीय है कि संधियों की कल्पना सूर्य सिद्धान्त (१-२४) में काम नहीं ली गई है जहां पर सूक्ष्म सृष्टि, अदृश्य सृष्टि संवत् ४७४०० दिव्य वर्ष दी गई है । यह भी ध्यातव्य है कि सूर्य सिद्धान्त (१-१७) में युगों के तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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