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________________ ओं सृष्टि संवत् 0 प्रोफेसर प्रतापसिंह प्रत्येक राष्ट्र को, अपनी सांस्कृतिक मान्यताओं आदि के प्रति स्वाभाविक लगाव व आकर्षण होता है। सृष्टि संवत् भारतीय संस्कृति की परम्परागत धरोहर है । इसमें सृष्टि की अवधि की गणना का इतिहास है । सृष्टि संवत् का आधार संकल्प सूत्र है जिसकी परम्परागत प्राचीनता अज्ञात है । वेद को श्रुति कहते हैं। इसी प्रकार संकल्प सूत्र को अनुश्रुति कहते हैं। संपूर्ण राष्ट्र (भारत) उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम में ७५ वर्ष से मैंने इसका एक सा ही रूप पाया है ---- "ओं तत्सत् श्री ब्रह्मणो द्वितीय प्रहरार्द्ध वैवस्वत् मन्वन्तरे ....."।" ज्योतिष हिमाद्रि ग्रंथ तथा ज्योतिषाचार्य भास्कराचार्य कृत सिद्धान्त शिरोमणि ग्रंथ में लिखा है कि जिस क्षण गत कल्प समाप्त हो रहा था उसी क्षण चैत्र सुदी एकम् रविवार के दिन सूर्योदय के साथ परमात्मा की स्वाभाविक कामना, ईक्षण, तथा तप के साथ सृष्टि के कारणरूप सत्, रजस् व तमस् की साम्यावस्था - प्रकृति में विक्षोभ उत्पन्न हुआ। तीनों को परस्पर, आकर्षण-विकर्षण से अन्योन्य मिथुनीकरण प्रक्रिया हुई जिससे सूक्ष्म सृष्टि की रचना प्रारम्भ हुई । उसी क्षण से सृष्टि संवत् प्रारम्भ हुआ जिसकी गणना आज तक संकल्प सूत्र में है । संकल्प सूत्र सृष्टि की आयु का इतिहास है। जिसका उल्लेख ऊपर दिया है । वही सूत्र स्वामी दयानन्द सरस्वती ने, स्वरचित ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका में दिया है । सूत्र कहता है कि सृष्टि का दूसरा पहर चल रहा है, अभी सष्टि-दिन की दोपहर (NOON) होने वाली है जिसकी संख्या ६ मनु, २७ महायुग गणना तथा सत्+ता+ द्वापर-+वर्तमान कलि का समय ५०९६ वर्ष सृष्टि संवत् है । इस गणना से सृष्टि संवत् १९६०८५३०९६ वर्ष संख्या आती है। यह गणना सृष्टि का इतिहास है, जो भारतीय ज्योतिष की महान् धरोहर है । पिछले दिनों इस संकल्प सूत्र का दूसरा रूप मेरे समक्ष आया है"अद्य ब्रह्मणो द्वितीय परार्द्ध श्री श्वेत वाराह कल्पे वैवस्वत् मन्वन्तरे.......।" पहले में "अद्य परार्द्ध श्री श्वेत वाराह कल्पे" है, शेष दोनों में समानता है। गणना समान है । ६ मनु २७ महायुग तथा आज तक की तीनों युगों की संख्या से सृष्टि संवत् १९६०८५३०९६ वर्ष ही आती है। सूर्य सिद्धान्त का सूत्र (१-२१) ब्रह्मा की आयु शत वर्ष कहता है जिसकी खंड २२, अंक १ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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