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________________ र षम'थांनक हमराजां णी भाटी अणदै सष्टांग लघाती' देवलाग गमअति।' २. समत १८६१ वरषे मती फाग ण सुद १२ वर मंगल मनरूप पेमांणि (मा) 2 सती प्रोतांणी उमां सेवै सुरतांणोत री माथ चोसेला भाइ गोमे करया । ३. श्री गणेसा य (नमः) समत १८७९ वषे (माता मारहा) जेठ सुद १४ सुभ दीन (सोम ?) कज(ली) दासः सवाइजीरोत कलदि सती प्रोयताणी (शंभु) प्रसादारोत तीयरी देवली आ सुजी चाडी छः सवाइजी रे बे टा मती आषाढ वदी १ ४. संवत १ (७)५४ वरषे जेठ(?) सुद ११ सुक र वारे पहैत थनक झमरू धणाइद माहसता बनवां सरग लोक गता टिप्पणी: १. “षम"-स्तंभ के लिए। २. 'सष्टांग लघाती'--आठों अंगों को पृथ्वी पर स्पर्श करके । ३. 'गमअति''गच्छति' का मूलरूप-गम्-जाना क्रिया । ४. 'चोसेला'-यह देवली (देवकुल) स्मारक का विशेष नमूना है। इसमें सेवै (सेवाराम) सुरतांणोत की पुत्री उमा पुरोहिताणी के सती होने पर उसके भाई गोमे (गोमाराम) ने ऐसी देवली निर्माण कराई है जिसमें उसकी बहन ढाल तलवार लिये घोड़े पर सवार है और साथ ही चौकी पर हाथ जोड़े खड़ी भी कोरी गई है। ५. 'मासोत्तमेमासे'- पद के लिए कुछ लिखा प्रतीत होता है ।। ६. 'आसुजी चाडी छः' इस वाक्य से यह प्रकट किया गया है कि परिजनों में बड़े पुरुष ने यह देवली स्थापित कराई है। ७. 'माहसता बनवां सरग लोक गता'-यह वाक्य भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि इसमें यह विश्वास प्रकट किया गया है कि स्वर्ग जाने से मृत पति की पत्नी 'महासती' हो जाती है। तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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