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इसी प्रकार तीन सागरोपम आयुष्य वाले देव तीन पक्षों से एक बार आन, प्राण, उच्छ्वास, निःश्वास लेते हैं । और उन्हें तीन हजार वर्षों से भोजन करने की इच्छा उत्पन्न होती है जिससे देवताओं का उच्छ्वास, निःश्वास और भोजन उनकी आयुष्य के कालमान के आधार पर निर्धारित होता है, ऐसा जान पड़ता है । समवायांग में १ से लेकर ३३ सागरोपम आयुष्य वाले देवों के उच्छ्वास, निःश्वास और भोजन करने की इच्छा उत्पन्न होने का समय बताया गया है, जो समान अंतर के आधार पर क्रमशः बढ़ता गया है । इस संबंध में एक प्राचीन गाथा भी उपलब्ध होती है
जस्स जइ सागरोवमाई ठिई, तस्स तत्तिएहि तत्तिएहि पक्खहि । ऊसासो देवाणं वास सहस्सेहि, आहारो तत्तिएहि पक्खेहिं ॥
जिसकी जितनी सागरोपम की आयुष्य स्थिति होती है उसके एक सागरोपम स्थिति का एक पक्ष इस अनुपात से श्वासोच्छ्वास की क्रिया होती है और एक सागरोपम का एक हजार वर्ष -इस अनुपात से आहार का कालमान होता है । श्वास और आयुष्य का सिद्धान्त
१ सागरोपम आयुष्य वाले देव को आहार करने की इच्छा उत्पन्न होती है ? किया जा सकता है । अर्थात्
२४×१= २४ उच्छ्वास,
निःश्वास
एक पक्ष में १ उच्छ्वास और निःश्वास एक वर्ष (२४ पक्ष ) में १००० वर्ष में – २४४१००० = २४००० उच्छ्वास - नि:श्वास दो सागरोपम आयुष्य वाले देव दो पक्षों से १ उच्छ्वास - निःश्वास लेते हैं । २ पक्षों से
१ उच्छ्वास - निःश्वास
३४=१२
( १ वर्ष) २४ पक्षों से २००० वर्षों से १२x२००० = २४०००
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तीन सागरोपम आयुष्य वाले देव जो तीन पक्षों से १ श्वास लेते हैं वे एक वर्ष (२४ पक्ष ) में ४ ३००० वर्षों में -- ३०००X८ = २४००० उच्छ्वास - निःश्वास लेंगे ।
= ८
किसने उच्छ्वास और निःश्वास के बाद इस प्रश्न का उत्तर गणित पद्धति से गुणित
१६
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इस क्रम से १ से लेकर ३३ सागरोपम आयुष्य वाले देवों को २४००० श्वासोछ् - वास के बाद आहार करने की इच्छा उत्पन्न होती है ।
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सभी देवों के लिए आहार करने की इच्छा के लिए उच्छ्वास और निःश्वास की संख्या एक समान है । परन्तु एक वर्ष में उच्छ्वास, निःश्वास लेने में संख्या का अंतर है ।
मनुष्यों की स्थिति
मनुष्य सामान्यतया १ मिनट में १५ श्वास लेता है । जब वह चलता है तब
तुलसी प्रशा
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