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मानव और देवताओं का कालमान (एक अंकगणितीय अध्ययन)
मुनि श्रीचन्द्र 'कमल'
श्वास का संबंध आयु से होता है। जहां श्वासोच्छ्वास (प्राण) पूर्ण हो जाता है वहां आत्मा उस शरीर को छोड़ देती है । जीवात्मा रहित शरीर मृत घोषित हो जाता है । जिस जीव के जितने श्वासोच्छवास निश्चित हैं वह उतने ही प्राणापान लेगा । यदि कोई प्राणी १ मिनट में सामान्य श्वास से अधिक श्वास लेता है तो वह निश्चित समय से पूर्व ही अपने आयुष्य को पूर्ण कर लेता है और यदि कोई जीव ध्यान, साधना के द्वारा १ मिनट में श्वासों की मात्रा कम कर लेता है तो वह अपनी निश्चित आयु-अवधि को बढ़ा लेता है। इस प्रकार श्वास की गति के आधार पर आयुष्य का परिमाण (वर्ष, मास आदि की गणना में) कम या अधिक होता है ।
समवायांग सूत्र, श्वासोच्छ्वास के संबंध पर विशेष प्रकाश डालता है। वहां श्वास का संबंध भोजन के साथ जोड़ा गया है। समवायांग, प्रथम के ४४वें और ४५वें सूत्र में वर्णन है
ते णं देवा एगस्स अदमासस्स आगंमति वा पाणमंति वा अससंति वा नीससंति वा । (११४४)
तेसि णं देवाणं एगस्स वाससहस्सस्स आहारट्ठे समुपज्जा (१।४५)
वे (एक सागरोपम आयुष्य वाले) देव एक पक्ष से आन, प्राण, उच्छ्वास और निःश्वास लेते हैं।
उन देवों के एक हजार वर्ष से भोजन करने की इच्छा उत्पन्न होती है। इसी प्रकार समवायांग (२।२१.२२) के अनुसार---
ते गं देवा दोण्हं अद्धमासाणं आणमंति वा पाणमंति वा अससंति वा नीससंति वा । (२।२१)
तेसि णं देवा दोहिं वाससहस्सेहिं आहाढे समुपज्जा (२।२२) ।
वे (दो सागरोपम आयुष्य वाले) देव दो पक्षों से आन, प्राण, उच्छ्वास, निःश्वास लेते हैं।
उन देवों के दो हजार वर्षों से भोजन करने की इच्छा उत्पन्न होती है । खण्ड २१, बैंक २१
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