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________________ १२. राजस्थान डिस्ट्रीक्ट गजेटियर, टौक, १९७० ई० पृ० ३०० १३. सांचोर (जिला जालोर) का राज्य कालमों से विजयसिंह (देवड़ा) ने छीन लिया, जिस पर (भीमसिंह के वि० सं० १२२५ सांचोर शिला-लेख तक) उसके वंशजों का आधिपत्य निरन्तर बना रहा । उस (विजयसिंह) के आठवें उत्तराधिकारी राजा हरपालदेव का हरपालिया (जिला बाड़मेर) पर पुनः शासन होने का स्तम्भ लेख मिला है । हरपालदेव ने बिना राज्यवाले अपने पिता, पितामह आदि के नाम उक्त लेख में लिखाने की उपादेयता न समझी___ "सूर्यवंश के उप-वंश चौहान वंश में राजा विजयसिंह हुए। उसके बाद बखतराज, यश कर्ण, शुभराज, भीम आदि के बाद आठवें राजा हरपालदेव और राजकुमार सामन्तसिंह....."हैं ।" देखें- डॉ० परमेश्वर सोलंकी के हरपालिया कीर्ति स्तंभ विषयक लेख, मरुभारती, पिलानी, अंक ३६।१ एवं ३७।४ १४. राजस्थान डिस्ट्रीक्ट गजेटियर्स-जालोर, राजस्थान सरकार, जयपुर, १९७३ पृ० २० । विस्तृत विवरण के लिये देखें- आबू और 'भीनमाल का प्रतिहार राजवंश' (राव गणपतसिंह) शोध पत्रिका, उदयपुर ४५।२-३ पृ० ३८-५७ १५. देखें डॉ० परमेश्वर सोलंकी, कालकाचार्य कथानक पर एक दृष्टि, शोध पत्रिका, उदयपुर । डॉ० सोलंकी ने कालक कथा को सर्वप्रथम सं० ११४६ में खम्भात में लिखा जाना सिद्ध किया है और इस कथा को पांचवें कालकाचार्य से संबंधित माना है जो ९६ वर्ष की उम्र पाकर मोक्ष को प्राप्त हुए। १६. सोलंकियों के पूर्वज ने कांचीवरम् को जीत कर वहां के मंदिरों के लिये प्रभूत् दान दिया था जिससे उसे 'कांचिकव्याल' कहा गया वैसे ही दड़क्क ने भी विपाशा (व्यास) नदी के नाम से प्रसिद्ध राष्ट्राध्यक्ष गज को परास्त कर प्रभूत् दान वितरण किया। १७. श्री कुमारपाल भूपाल चरित्र (श्री जयसिंह सूरि) निर्णयसागर मुद्रणालय, मुम्बई, सन् १९२६ श्लोक सं० २५ से २८ १८. ओझा, डॉ० गौ० ही०; जोधपुर राज्य का इतिहास, प्रथम खड वैदिक यन्त्रालय, अजमेर (१९३८ ई०) पृष्ठ १०२-३ १९. विशेष जानकारी के लिये कृपया देखिये १०वीं से १४वीं सदी का आबू' नामक मेरा लेख (रणबांकुरा, वर्ष ९ अंक ७ पृष्ठ २-५) । २०. गुजरात में वांसदा, लूणवाड़ा, पीथापुर सहित कुछेक ठिकाने सोलंकियों के थे, लेकिन उनके वंशानुगत वृत छिट-फुट रूप में ही सही, आधे अधूरे मिलते २१. उदयपुर राज्य का इतिहास, पहली जिल्द, पृष्ठ ३३९; चौहान कुल कल्पद्रुम, ___ भाग १ पृष्ठ २२०; राजस्थान डिस्ट्रीक्ट गजेटियर्स, सिरोही (१९६७ ई० संस्करण) पृ० ६१, रासमाला (अनु० गोपालनारायणजी बहुरा) द्वितीय भाग पृ० १० तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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