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________________ सामन्तसिंह के पौत्र और देवराज के पुत्र वीरमदेव ने महाराणा अमरसिंह (प्रथम) की सहायता में शाहजादा खुर्रम के साथ बड़ी मर्दानगी से कई लड़ाइयां लड़ी।" वीरमदेव के बाद जसवन्तसिंह हुआ। फिर दलपतसिंह हुआ, जो महाराणा राजसिंह के प्रधान फतहचन्द के साथ बांसवाड़ा की चढ़ाई में सम्मिलित था ।३० दलपतसिंह का आत्मज विक्रम (वीका) जैसा नाम वैसा वीर हुआ। कुंवर भीमसिंह, सोलंकी वीक्रम, राठोड़ गोपीनाथ आदि ने नारलाई (घाणेराव के पास) शाहजादा अकबर एवं तहब्बर खां द्वारा संचालित १२,००० सेना के साथ घोर युद्ध किया, जिसमें दोनों योद्धाओं ने बड़ी वीरता दिखाई । उन्होंने न केवल मुगल सेना को परास्त किया, बल्कि उसका खजाना भी लूट लिया।३१ बीका का उत्तराधिकारी सूरजमल था, जिसने महाराणा संग्रामसिंह (द्वितीय) के समय में बांधनवाड़े के निकट रणबाज खां के साथ दिल खोल कर युद्ध लड़ा । अन्त में राजपूतों की विजय हुई ।२ सूरजमल के पीछे क्रमशः श्यामलदास→वीरमदेव (दूसरा)-जीवराज-कुबेरसिंह-रत्नसिंह, सरदारसिंह-नवलसिंह-बैरीसाल+भूपालसिंह- अजीतसिंह हुए।" डॉ० ओझा के अनुसार वि० सं० १९८८ में अजीतसिंह मौजूद था। सन्दर्भ : १. ओझा, डॉ० गो० ही०; सोलंकियों का प्राचीन इतिहास, प्रथम भाग; वैदिक __ यन्त्रालय, अजमेर (वि० सं० १९६४) पृष्ठ १ की टिप्पणी । २. ऍपि० इण्डि०, खण्ड ३, पृ० २९३-३०५ ३. गहलोत, जगदीशसिंह; राजस्थान के राजवंशों का इतिहास (सं. विजयसिंह गहलोत) जोधपुर प्रिण्टर्स, जोधपुर (१९८० ई०) पृ० ३५ ४. वैद्य, सी० वी०; हिन्दू भारत का उत्कर्ष, पृ० २४१ ५. शेखावत, रघुनाथसिंह काली पहाड़ी; क्षत्रिय राजवंश, भाग ३; अनुपम प्रिण्टर्स, __ झंझुनूं (वि०सं० २०५०) पृ० ९ ६. मजूमदार, अशोक कुमार; चौलुक्याज ऑफ गुजरात; भारतीय विद्या भवन, बम्बई-७ (१९५६ ई०) पृ० ७ ७. विशेष विवरण के लिए कृपया देखिये, “अग्निकुल की उत्पति और आबू" नामक ___ मेरा लेख (रणबांकुरा, वर्ष १० अंक ११ पृ० ३२-२७) ८. चौलुक्याज ऑफ गुजरात, पृ० २२ ९. मुंहता नैणसीरी ख्यात, भाग १ (सं० बदरी प्रसाद साकरिया) राजस्थान प्राच्यविद्या प्रतिष्ठान, जोधपुर (वि० सं० २०१६) पृ० २८० और २६३ इनको हम उत्तर भारत के चौलुक्य कह सकते हैं और उन्हीं का इस स्थान से आशय रहा हो। १०. बांकीदासरी ख्यात (सं० पंडित नरोत्तमदासजी स्वामी) राजस्थान पुरातत्त्वान्वेषण ___मन्दिर, जयपुर (वि० सं० २०१२) पृ० १ बात सं० १ ११. श्री धुंकलजी भूरजी राव, निवासी अनापुर (ताल्लुका-धानेरा) ___इन कथनों की पुष्टि करने का कोई स्रोत नहीं मिला है । खण्ड २% अंक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524587
Book TitleTulsi Prajna 1996 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages194
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size8 MB
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