SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बाद में उस व्यक्ति पर मुकदमा चला । यह कहानी सुनकर मैंने अपने एक मुद्रा संग्राहक को शौरीपुर भेजा कुछ समय के बाद उसने मुझे अपोलोडोटस और पाथियन राजाओं के सिक्के लाकर दिये।" इस विवरण से ज्ञात होता है कि शौरीपुर ई० पू० शताब्दी में व्यापारिक केन्द्र था क्योंकि अपोलोडोटस का काल ई० पू० दूसरी-तीसरी शताब्दी माना जाता है। जनरल कनिंघम के सहकारी ए०सी० कार्लाइल" की एक रिपोर्ट से ज्ञात होता है कि उन्हें शौरीपुर के एक गडढे में एक पदमासन जैन प्रतिमा मिली थी, उसके दोनों ओर सेवक थे और शीर्ष पर दोनों ओर गज थे। मूर्ति पर कोई लेख नहीं था, मूर्ति दो फुट की बलुआ पत्थर की भूरे रंग की थी। एक मंदिर की दीवार पर उन्हें एक शिलालेख मिला था जिसे वे पढ़ नहीं सके थे। मंदिर के निचले भाग में उन्हें तीन पद्मासन जैन मूर्तियां मिलीं जोकि मिट्टी में गरदन तक दबी हुई थी। इनमें दो ठीक थी, किन्तु एक का सिर खण्डित था। ये मूर्तियां उन्होंने बाहर निकलवायी। बड़ी मूर्ति पर वि० सं० १०८२ या ९२ पढ़ा गया था यह आदिनाथ की प्रतिमा थी शेष दोनों प्रतिमायें भी इसी के समकालीन रही होंगी। एक नाले में और आस-पास खुदाई करने पर उन्हें प्राचीन मंदिरों के अवशेष प्राप्त हुए। मंदिरों के पीछे १२ मीटर लम्बी चौड़ी पुरानी नींव भरी है। इसमें जिन ईटों का प्रयोग हुआ है उसकी लम्बाई १४ से १५ इंच तक है। इस प्रकार कार्लाइल को १.६० मीटर मोटी प्राचीन दीवार सुरंग, गोद में बच्चा लिए पद्मावती की मूर्ति, दो फुट तीन इंच ऊंची बादामी रंग की भगवान् पार्श्वनाथ की प्रतिमा तथा अन्य सामग्री मिली जोकि अधिकांशतः जैन है। इससे सिद्ध होता है कि प्राचीन काल में यह नगरी अत्यन्त ही समृद्ध थी। मध्यकाल में १६ वीं शताब्दी तक यहां दिगम्बर भट्टारक की गद्दी रही। __शौरीपुर में कई प्राचील दिगम्बर जैन मंदिर हैं। इस क्षेत्र का जो दो मंजिला मुख्य मंदिर है, वह सन् १६६७ में भट्टारक विश्वभूषण द्वारा निर्मित एवं प्रतिष्ठापित कराया गया था। दूसरा मंदिर बरूआमठ नामक कुछ सीढ़ियां चढ़कर हैं जो कि सबसे प्राचीन हैं। तीसरा मंदिर मंजिल पर शंखध्वज नाम का है। उसमें चार बेदियां हैं मूलनायक भगवान् नेमिनाथ मध्य की बेदी पर विराजमान हैं, बायीं ओर गर्भगृह में पार्श्वनाथ, श्रेयांसनाथ और चन्द्रप्रभु भगवान की प्रतिमायें विराजमान हैं। दांयी ओर के गर्भगृह की एक प्रतिमा सन् १२५१ की है। यहां पर कई शिलाफलक भी हैं। शौरीपुर का अस्तित्व महाभारत काल में था। यह २२ वें तीर्थंकर भगवान नेमीनाथ की कर्मभूमि थी। हरिवंश के अनुसार प्राचीन क्षत्री राजा हरि के वंशज वसु थे। उनकी संतति में यदुवंश के संस्थापक राजा यदु हुए। उनके पुत्र नरपति थे। नरपति पुत्र सूर थे। उन्हीं के नाम पर इस महाजनपद का नाम सूरसेन पड़ा और यह शौरीपुर उसी का मुख्य नगर था। सूर के पुत्र अन्धक-वृष्टि के बड़े पुत्र महाराजा समुद्र विजय की महारानी शिवादेवी से नेमिनाथ का जन्म हुआ था। तब यह नगर खण्ड २२, अंक ४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy