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________________ बड़ा ही समृद्ध था। लेकिन राजगृह के अधिपति जरासंध के आक्रमणों से त्रस्त होकर यादवों द्वारा शौरीपुर का परित्याग कर द्वारिका नगरी में जा बसने पर यहां की प्राचीन बस्ती धीरे धीरे उजड़ती गई । यहाँ की जो समृद्धि ईसा पूर्व तीसरी सदी तक अक्षुण्ण रही आयी थी। वह आज इन खण्डहरों में दबी पड़ी है। पुरातत्व विभाग के सर्वेक्षण के दौरान इस क्षेत्र में पुरा कालीन मिट्टी के बर्तनों के अवशेष प्राप्त हुए । ये टुकड़े चाक मिट्टी के बने हुए सिलेटी रंग के हल्के और चिकने हैं। इनका काल १००० ई० पू० अनुमानित है। बर्तनों के दूसरे अवशेष मौर्यकालीन (६००ई०पू० से २०० ई० पू० तक) इन पर सुनहरी पालिश है । इस काल में यह नगर अत्यन्त समृद्ध था। नगर का प्राचीन वैभव और उसकी सांस्कृतिक समृद्धि टीलों के नीचे दबी पड़ी है। एक बार क्षेत्र कमेटी ने मंदिर के दक्षिण की ओर एक टीले की खुदाई कराई यी । फलतः अनेक सांगोपांग जैन प्रतिमायें निकली थीं। इसी प्रकार एक बार आदि मंदिर का जीर्णोद्धार करते समय किसी प्राचीन मंदिर का प्रस्तर युक्त नीचे का भाग मिला था। उसमें मिले एक शिला लेख बि० सं० १२२४ में इस मंदिर के जीर्णोद्धार का उल्लेख है। संदर्भ १. उत्तर प्रदेश जिला आगरा गजेटियर (श्रीमती इशाबंसती जोशी संपादिका) पृ० १७५। २. रायल एसियाटिक सोसायटी जर्नल पहला भाग पृ० ३१४ है. ए. सी० एल कार्लाइल-आकलाजिकल सर्वे आफ इण्डिया रिपोर्ट १८७१ भाग ४ पृ० २० । ४. अमर उजला १९८५ . पं० झमन लालजी लम्मैचू जैन इतिहास । ६. चन्द्रवार का इतिहास ७. पद्मपुराण । ८. हरिवंश पुराण ९. नेमिनाथ पुराण । -सन्दीपकुमार चतुर्वेदी शोधछात्र कानपुर विश्व विद्यालय कानपुर तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524586
Book TitleTulsi Prajna 1996 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1996
Total Pages246
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size10 MB
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