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________________ है इसलिए अहिंसा महाव्रत भंग होता है है । भगवान् की आज्ञा की चोरी है । होता है इसलिए ब्रह्मचर्य महाव्रत भंग परिग्रह होता है । असत्य बोलने में महाव्रत भी भंग हो जाता है । । असत्य बोलने से अचौर्य महाव्रत भंग होता असत्य बोलने से आचार की शीलता का भंग होता है । विचारों की आसक्ति या मूर्छा विचारों का परिग्रह होता है इसलिए अपरिग्रह स - साहरसदंती लोके मूल - जो तू मोह राजा संघाते भूक करता साहसीक थाजे देती हाथी नी परे । जिम हाथी साहसीक आगे थइ ने देत थी कीलातो कपाट गढ कोट भांजे तिम तूं पिण मोह राजा के मिध्यातरुप गढ कोट ने भांजस्ये । हिंदी - मोह राजा के साथ युद्ध करते समय दंत वाले हाथी की तरह साहसिक होना । जैसे दंती हाथी आगे होकर चिंघाड़ता हुआ दांत से किंवाड़, गढ़ और कोट को तोड़ देता है वैसे ही तू भी मोह राजा के गढ़ और कोट को तोड़ देगा । प्रतिपाद्य - मोह आठ कर्मों में प्रधान कर्म है । उसके एक के नष्ट होने से सारे कर्म नष्ट हो जाते हैं । इसलिए शिक्षा दी गई है कि तूं मोह कर्म पर प्रहार कर | मोह के नष्ट होने पर सिद्ध गति का मार्ग सरल हो जाता है । - ह -हा हो लो हरिणे लोके मूल - वली तूं मोह रुप पारधी ने भरी नास जाय । जीम हिरण पारधीने पास मां पड्यो तो संसार बंधन थी छूटीस नही । पासामां पडीस मा हिरण नी परे फाल देखी नासी जाय न सकेज तूं पिण मोहरूप हिंदी - तू मोहरूप शिकारी के पाश में मत पड़ जाना, हिरण की तरह छलांग भर कर भाग जाना । जैसे हिरण शिकारी को देखकर दूर भाग नहीं सकता वैसे त भी मोहरूप पाश में पड़ेगा तो संसार बंधन से छूटेगा नहीं । प्रतिपाद्य - अगर मोह नष्ट नहीं करेगा, उसमें मूर्छित हो जाएगा तो संसाररूपी चक्र से निकलना बहुत कठिन हो जाएगा । इसलिए प्रतिपल जागरूकता की अपेक्षा है | ल्ल - ल्लावे लो बी दो पणिहार मूल - जो तूं मोक्ष नो अभिलाषी थइ ने संसार ताहरे पाणी भरस्ये । एक तो द्रव्य लक्ष्मी ने दूजी भाव देवता पणे उपजसी तथा मनुष भवे नरदेव चक्रवरती पणे द्रव्य लक्ष्मी पुन्य भोगवी पिछे सिधाने विषे भाव लक्ष्मी पामी । Jain Education International नां बंधने छोडीस तो बे लक्ष्मी लक्ष्मी ते माही अनुतर विमान उपजसी । भरतादीक नी परे नो भोगवे छे, तिम तू पिण हिंदी - यदि तू मोक्ष का अभिलाषी होकर संसार के बंधन को लक्ष्मी तुम्हारे पानी भरेगी । एक तो द्रव्य लक्ष्मी, दूसरी भाव लक्ष्मी । अनुत्तर विमान के देवता के रूप उत्पन्न होगा और मनुष्य भव में जाएगा तो नरदेव चक्रवर्ती के रूप में पैदा होगा । भरत आदि की तरह द्रव्यलक्ष्मी, पुण्य का भोग कर उसके बाद सिद्ध होकर भाव लक्ष्मी भोगेगा। वैसे तू भी सिद्ध को प्राप्त होगा । खण्ड २१, अंक ३ छोड़ेगा तो दो देव होगा तो For Private & Personal Use Only ३१३ www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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