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________________ ए ऐ-एवन बेवन बे गाडी बडी वेगाडी मातरो मूल-सुमत गुप्त बे गाडी वेसाडी ॥१४॥ हिंदी-समिति गुप्ति दो गाड़ियां पर बैठाकर । प्रतिपाद्य-- ईर्या समिति, भाषा समिति, एषणा समिति, आदान भंडपात्र निक्षेपना समिति, उच्चार प्रस्रवण परिष्ठापन समिति, मनगुप्ति, वचनगुप्ति और कायगुप्ति इन की सम्यक् साधना करने से चारित्र की विशुद्धि होती है। ओ, औ--- ओलखवा लावली दीया वडे वेगण जोतरीया मूल-ग्यान चारीत्र रुप बे बलद जोतरी आपस्ये ॥१५॥ हिंदी-ज्ञान चारित्र रूप दो बैल उस गाड़ी को जोतने के लिए देगा। प्रतिपाद्य-सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र ये मोक्ष के साधन हैं । सम्यक् दर्शन के बिना सम्यक् ज्ञान नहीं होता और सम्यक् ज्ञान के बिना सम्यक् चारित्र नहीं होता । ना बंसणिस्स नाणं, नाणेण विणा न हुंति चरण गुणा। -उत्त. २८१३० सम्यक् दर्शन प्राप्त होने के बाद सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र की आराधना करनी चाहिए। अं अः-अमीयां बे रासडी एकण उपर एक दे, दुजी आगल दो दे मूल-संवर निर्जरा रूप बे रासडी बांधी ने गाडोली उपर बेटा शिवपूर भणी चालवजो ॥१६॥ हिंदी-संवर, निर्जरा रूप दो रस्सी बांधकर गाड़ी के ऊपर बैठकर शिवपुर के लिए उस गाड़ी को चलाना । प्रतिपाय-संवर और निर्जरा ये दो साधन हैं इनसे मार्ग प्रशस्त होता है, सिद्धगति को प्राप्त किया जा सकता है। पांचवें गुणस्थान से १२वें गुणस्थान तक संवर, चौदहवां गुणस्थान संवर और प्रथम चार गुणस्थान व १३वां गुणस्थान निर्जरा रूप है। क--ककोकेवलियो मूल-केवलि परुप्यो धर्म विना तो सिद्ध गती पहुचो न थी॥१७।। हिंदी-केवलि प्ररूपित धर्म के बिना सिद्ध गति नहीं जाते। प्रतिपाद्य-इणमेव निग्गंणं पावयणं सच्चं अणुत्तरं केवलं परिपुण्णं नेआउयं संसुदं सल्लगत्तणं मुत्तिमग्गं निज्जाणमग्गं निव्वाणमग्गं अवितहमविसंधिसम्वदुक्खप्पहीणमग्गं । यही निर्ग्रन्थ प्रवचन सत्य अनुत्तर अद्वितीय, प्रतिपूर्ण, मोक्ष तक पहुंचाने वाला, संशुद्ध, शल्य को काटने वाला, सिद्धि का मार्ग,मुक्ति का मार्ग, शांति का मार्ग, सत्य, ३०२ तुलसी प्रज्ञा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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