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________________ अविच्छिन्न, समस्त दुखों के क्षय का मार्ग है । ख - खखो खाजुलो मूल -अने तो केवली सिध तो अनहार मारग थी उपजे छे ते माटे । तूं च्यार प्रकार ना आहारमा रस इंद्री नो लोलुपी थाइस मा ॥ १८ ॥ हिंदी और अनाहारक केवली ही सिद्ध होते हैं । तू चार प्रकार के आहार में रस इंद्रिय का लोलुपी मत बनना । प्रतिपाद्य – अशन, पान, खाद्य, स्वाद्य – ये चार प्रकार के आहार हैं । चौदहवें गुणस्थान का कालमान पांच हस्व अक्षर (अ, इ, उ, ऋ, लृ ) के उच्चारण जितना है । इस गुणस्थान के काल में केवली अनाहारक रहते हैं । केवली चौदहवें गुणस्थान से सिद्ध गति को जाते हैं । अशन रोटी, दाल, खिचड़ी, भात, घी, दूध आदि । पान - पानी, दाख आदि का धोवन आदि पेय पदार्थ । ग स्वाद्य खाद्य -- आम, अंगूर, केला आदि फल | बादाम, काजू, पिस्ता आदि मेवा ! - पान सुपारी, लौंग चूर्णवटी आदि द्रव्य जो भोजन के बाद मुख सुगंधित या स्वच्छता के लिए ग्रहण किये जाते हैं । बाह्य तप के भेद - अनशन - आहार का पूर्ण त्याग । अवमोदरिका-द्रव्य तथा मात्रा का अल्पीकरण | वृत्ति संक्षेप - भिक्षा ग्रहण के लिए अभिग्रहण का ग्रहण । रस परित्याग --- बिगय तथा स्निग्ध भोजन का त्याग । गगा गोरी गाय मूल- -अण आहारीक तपादिक मार्ग तो गुरु बतावे छे ते माटे गुरु नी भक्ती कर । गुरु तो मोटा अणगारी छे । संसार समुद्र तिरवाने बोधबीज धर्म नो आलंबनदिक गुरु आपै छे, ते मार्ट गुरु नो गोरवपणुं करजे । हिंदी -- अनाहार तप आदि का मार्ग गुरु बताते हैं । इसलिए गुरु की भक्ति कर । गुरु तो अनगारी (गृह रहित) होते हैं। संसार समुद्र को तीरने के लिए धर्म का आलंबन देते हैं । इसलिए गुरु का गौरव करना । प्रतिपाद्य - निर्ग्रन्थों को गुरु कहा जाता है । जो अर्हत् के प्रवचन ( शासन ) का अनुगमन करने वाले तथा बाह्य और आभ्यन्तर ग्रन्थियों से मुक्त होते हैं, वे निग्रंथ कहलाते हैं । घ- घघा घाट पिलाण्यो जाय मूल -- तूं घर का धंधा आरंभ संभारंभ भारं अहोनिस पिलाण्यो बहे छे ते भार थो गुरु मूकावस्ये ॥ २०॥ हिन्दी - तूं रात दिन घर के धंधे ( काम काज ) में आरंभ और समारंभ कर खण्ड २१, अंक ३ .३०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.524585
Book TitleTulsi Prajna 1995 10
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParmeshwar Solanki
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1995
Total Pages174
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Tulsi Prajna, & India
File Size7 MB
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